Saturday, July 7, 2012

इन सड़कों पर पले मोहब्बत




छुप-छुप कर मिलने का अब वो दौर कहां रहा! अब तो जमाना है मोहब्बत के बेइंतहां इजहार का, इश्क के परवान का! इस शहर नागपुर को कहते हैं भारत का दिल, तो भला दिल यहां मोहब्बत के लिए क्यों न धड़के? यहां न खाप की किसी पंचायत का खौफ है और न जमाने की जिल्लत की भय! दौड़ती सड़कों के किनारे छांव आशियाने बन गए हैं, मोहब्बत परवान चढ़ने लगी है. एक मशहूर गाने की पैरोडी गुनगुनाने को जी चाहता है..‘इन सड़कों पर पले मोहब्बत.’

हर शहर में मोहब्बत की अपनी एक अलग कहानी होती है. दिल्ली में लोधी गार्डन है तो मुंबई में बैंड स्टैंड और गुवाहाटी में लवर्स प्वाइंट! अपने शहर में है तेलनेखेड़ी, सेमिनरी और अंबाझारी गार्डन के अलावा फुटाला तालाब! महराजबाग और ऐसे ही कुछ और छोटे-मोटे पनाहगार हैं लेकिन वक्त के साथ आशिकों की संख्या इस तेजी से बढ़ रही है कि मोहब्बत सड़कों पर उतर आई है. सड़कों पर हरियाली की छांव फैली है, इससे मुफीद जगह और कहां मिल सकती है? यहां न कोई रोकने वाला है, न टोकने वाला. बस चेहरा सड़क से दूसरी ओर ही तो करना है!

सड़कों पर मोहब्बत सुकून से पलती है. पुलिस वालों का भय नहीं होता. गार्डन में तो हमेशा यह खौफ ही सताता रहता है कि पता नहीं किस झाड़ी से कोई पुलिसवाला डंडा फटकारता हुआ निकल आएगा और जेब हलकी करने पर मजबूर कर देगा. पता नहीं कौन सा मनचला कोई फब्ती कस देगा. पता नहीं किस कोने से समाज और संस्कृति के स्वंभू कमांडर निकल आएंगे और दो डंडे फटकार देंगे. मशहूर शायर मुनव्वर राना का एक शेर है-

गलियों में वही लड़के, हाथों में वही पत्थर!

क्या लोग मोहब्बत को हर दौर में मारेंगे!!

सड़कों पर सबकुछ खुला-खुला है, इसलिए कोई भय नहीं, लेकिन एक चिंता जरूर सताती रहती है कि इस इलाके से कहीं बापू न निकल आएं. कहीं पहचान न लें! अब ऐसे खतरे तो प्रेमियों को हर जमाने में ङोलने पड़े हैं. लेकिन सड़कें ऐसी ही चुनी जाती हैं जिन पर कभी बापू न जाते हों, घर से जरा दूर हो ताकि किसी पड़ोसी की नजर न पड़े! इन सड़कों का एक फायदा यह भी है कि यहां पार्को की तरह टिकट नहीं लगता और वाहन पार्क करने के लिए भी कोई रकम नहीं चुकानी पड़ती. सड़क किनारे वाहन खड़ा किया और मोहब्बत के पैगाम शुरु ! मोहब्बत को पनाह देने में सिविल लाईन, सेमिनरी हिल्स, तेलंगखेड़ी, अंबाझरी, गांधीसागर, सी.पी. क्लब, पुलिस जिमखाना, वेस्ट हाईकोर्ट रोड, पांढराबोढ़ी, छिंदवाड़ा रोड, काटोल रोड, अमरावती रोड, वीएनआईटी रोड आदि काफी आगे हैं. बस यहां इस बात का ध्यान रखना होता है कि पार्क जैसी नजदीकियां न बढ़ाएं.

ऐसी ही किसी सड़क पर किसी दिन मोहब्बत परवान चढ़ जाती है. फिर ये प्रेमी जोड़े मुनव्वर राना का शेर गुनगुनाते हैं..

पार्को में, न सिनेमा में, न सड़कों पर कहीं!

फैसला कर लो कि अब घर में मिलेंगे हम!!

लेकिन हर मोहब्बत की किस्मत इतनी भाग्यशाली नहीं होती. ज्यादातर मोहब्बत उसी तरह दम तोड़ जाती है जिस तरह बारिश में सड़कें!

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