Monday, September 29, 2014

सब भगवान ही करें! और हम कुछ नहीं?


इन दिनों हम सब शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा की आराधना का महापर्व मना रहे हैं. पूजा अर्चना कर रहे हैं. भक्ति के गीत गा रहे हैं. खुशियां मना रहे हैं. स्वयं की शुद्धि के लिए बहुत से लोग उपवास भी कर रहे हैं. हर ओर हर्षोल्लास है. पूरा वातावरण भक्तिभाव में डूबा है. मां अंबे की गूंज हैं. आकांक्षा सबकी यही है कि मां सबका भला करें. जीवन सुखमय हो जाए! ऐसी आकांक्षा हमें करनी चाहिए. सबका भला भी होना चाहिए लेकिन इस वक्त बड़ा सवाल यह है कि क्या सबकुछ भगवान ही करें? हम कुछ न करें? हम अपनी सांस्कृतिक सीख का पालन तक न करें? यह कितना बड़ा विरोधाभाष है कि जो संस्कृति हमें मां को ईश्वर के समकक्ष रखना सिखाती है. जो संस्कृति नारी को सर्वदा पूजयेत कहती है, उसी संस्कृति में पलने-बढ़ने वाले समाज का एक बड़ा हिस्सा नारी का असम्मान करता है. हर धर्म सदाशयता, सद्भाव और समर्पण सिखाती है लेकिन हम इसका कितना पालन करते हैं. हम स्वच्छता की बात करते हैं लेकिन हम अपने अंतर्मन को कितना स्वच्छ और निर्मल बनाते हैं? मां की आराधना के इस पावन पर्व पर कुछ ऐसा संकल्प लीजिए कि अपना भला भी हो और समाज/देश का भी भला हो! पूजा तभी सार्थक होगी!

कवि सुरेंद्र शर्मा मौजूदा हालात पर बड़ी तीखा व्यंग करते हैं. वे कहते हैं-‘माता को हम चौका पर बिठाकर पूजते हैं और अपनी मां चौके में बर्तन मांजने पर मजबूर होती है.’ बात कड़वी है लेकिन है सोलह आने सच! क्या कभी हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि विधवाश्रम में ऐसी कितनी महिलाएं हैं जिनके बेटे और बहू ने उन्हें वहां पहुंचा दिया है? यह जानने में हमारी कोई रुचि नहीं होती. हम अपने आप में मगन रहते हैं. मां का दिल देखिए कि कभी ऐसो बेंटों की पहचना भी उजागर नहीं करती!  ध्यान रखिए कि आप जो व्यवहार अपने माता-पिता से कर रहे हैं, आपका बच्च वही व्यवहार आपसे करेगा!

नारी पूजने वाले इस देश में महिलाओं के साथ क्या व्यवहार होता है इसकी थोड़ी बहुत कहानी तो सरकारी आंकड़े कह ही देते हैं. हालांकि स्थिति इससे ज्यादा विकराल है. फिर भी आईए नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2012 के उपलब्ध कुछ आंकड़ों पर नजर डालते हैं. महिलाओं के खिलाफ 2 लाख 44 हजार 270 अपराध हुए. इनमें से 1 लाख 6 हजार 527 मामले घरेलू हिंसा के थे. आकड़े बताते हैं कि प्रत्येक 9 मिनट में कोई न कोई महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है. महिलाओं के खिलाफ हर 3 मिनट में एक अपराध होता है. वर्ष 2012 में देश में बलात्कार के  24923 मामले दर्ज किए गए. इनमें से 24470 बलात्कार के मामलों में कोई न कोई परिचित शामिल था. क्या यही है हमारी संस्कृति कि एक तरफ तो नारी को पूजें और दूसरी तरफ उसे प्रताड़ित करें! चलिए, ज्यादातर लोग यह कहेंगे कि वे तो नारी को प्रताड़ित नहीं करते! ऐसे लोगों से एक सवाल पूछा जा सकता है कि अपने पड़ोस में घरेलू हिंसा का शिकार हो रही महिला के पक्ष में कभी उठे हैं वे? ज्यादातर लोग जवाब नहीं देंगे. मौन साध लेंगे. क्या अपराध घटित होते देखना किसी अपराध से कम है?

नारी को पूजने वाले इस देश में दहेज का दाग जितना गहरा है, उतना किसी और देश में नहीं है. कितना शर्मनाक  है यह सब! कन्या भ्रुण हत्या का बड़ा कारण संभत: यह दहेज ही है. जिन समाजों में दहेज का बोलबाला है, वहां लड़की का जन्म होते ही परिवार को भय सताने लगता है कि दहेज कहां से जुटाएंगे. इससे बचने के लिए वह परिवार कन्या भ्रुण हत्या पर उतर आता है. कम ही ऐसे परिवार हैं जिन्होंने दहेज को अपने से दूर किया है और बहू को बेटी का सम्मान दिया है. आश्चर्यजनक यह है कि लोग अपनी बेटी के लिए तो सुखी ससुराल की कल्पना करते हैं लेकिन अपनी बहु को सुख देने में कोताही बरत जाते हैं. दहेज के ज्यादातर मामले तो सामने भी नहीं आते! जो मामले सामने आते हैं, वे वही होते हैं जहां सहन की सीमा समाप्त हो जाती है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2012 में दहेज हत्या के 8233 मामले दर्ज हुए. जरा कल्पना कीजिए कि दहेज प्रताड़ना के कितने मामले हुए होंगे. क्या कभी हमने यह जानने समझने की कोशिश की है कि ऐसा क्यों हो रहा है? क्या हमारी पूजा सार्थक है? माता की पूजा वास्तव में तभी सार्थक होगी जब हम नारी का सम्मान करना सीखेंगे.


हम संकल्प लें
माता-पिता का असम्मान करने वालों का सामाजिक बहिष्कार करेंगे.
गुंडागर्दी से नहीं डरेंगे. गुंडों को प्रश्रय देने वाले राजनेताओं का नकार देंगे.
्रअपराध न करेंगे और न करने देंगे
अराजकता न फैलाएंगे, न बर्दाश्त करेंगे.
रिश्वत न देंगे और न लेंगे.
बेईमानी न करेंगे, न करने देंगे.
मिलावट के खिलाफ लड़ेंगे.
गंदगी न फैलाएंगे, न फैलाने देंगे.
भ्रष्टाचार से मुकाबले के लिए एक जुट होंगे.
बलात्कार करने वालों का सामाजिक बहिष्कार करेंगे.
दहेज मांगने वाले परिवार में शादी नहीं करेंगे.
घोटाले की भनक लगते ही पुलिस को खबर देंगे
कन्यभ्रुण हत्या वाले परिवार का बहिष्कार करेंगे.
बाल मजदूरी को रोकेंगे. यदि सक्षम हैं तो ऐसे बालकों को पढ़ाने की कोशिश करेंगे.
झगडा-फसाद से दूर रहेंगे.




इनका सम्मान करेंगे
सच्चई
ईमानदारी
अनुशासन
नारी सम्मान
एकता
उदारता
सहिष्णुता
सद्भाव
देशभक्ति

अमिताभ से मिलने के बाद
क्या लिखा था डॉ. हेन ने?
प्रसंग बहुत पुराना है लेकिन है बहुत मौंजू! शादी के बाद अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी हनीमून के लिए ब्रिटेन जा रहे थे तो डॉ. हरिवंश राय बच्चन ने उनसे कहा कि कैंब्रिज जाकर मेरे गुरु और गाइड डॉ. हेन से जरूर मिलना, उनका आशीष लेना. डॉ. हरिवंश राय बच्चन जब पीएचडी के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय में महान कवि डब्ल्यू बी. इट्स पर शोध कर रहे थे तो डॉ. हेन उनके गाइड थे. खैर, अमिताभ और जया उनसे मिले. डॉ. हेन बहुत खुश हुए. इस मिलन के बाद डॉ. हेन ने हरिवंश राय बच्चन को पत्र लिखा कि यह भारत में ही संभव है कि बेटा और बहू माता-पिता के साथ रहे. मेरा बेटा अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन क्या वह होता तो हमारे साथ होता? नहीं होता! क्योंकि हमारे यहां तो बेटा अपनी शादी के साथ ही अलग घर बसा लेता है. बहुत सहृदयता हुई तो छठे चौमासे कभी मिलने आ गया या कभी अपने घर बुला लिया. साथ रहने का तो सवाल ही नहीं है.
जरा सोचिए! क्या हम अपनी संस्कृति छोड़कर कहीं फिरंगियों की संस्कृति तो नहीं अपना रहे हैं?

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