Friday, May 25, 2012

कनपटी पर बंदूक...मांग में सिंदूर

कनपटी पर बंदूक


मांग में सिंदूर



फिल्म अभिनेता आमिर खान ने बिहार के पकड़ऊआ शादी को नेशनल स्टेज पर ला दिया है. आमिर ने ऐसी शादी के शिकार जिस युवक की कहानी बताई, उसका अंत सुखद रहा लेकिन हकीकत यह है कि ऐसी शादियों के साथ एक लंबी त्रसदी जुड़ी होती है और अमूमन जिंदगी एक टीस बनकर रह जाती है. इस तरह की खौफनाक शादियां उत्तर बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के बड़े हिस्से में पिछले करीब चालीस साल से जारी हैं. कहा यह जाता है कि पकड़ऊआ शादी की असली वजह दहेज है लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है. इसमें कोई संदेह नहीं कि ऐसी शादियों की शुरुआत दहेज की वजह से हुई थी लेकिन अब तो यह पूरी तरह दबंगता की कहानी है और इसमें भी दहेज शामिल है.

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई सामान्य व्यक्ति किसी युवक का अपहरण कर ले और अपनी बेटी या बहन की शादी उससे कर दे? दरअसल इस तरह की शादियों की शुरुआत बिहार के बेगुसराय और मोकामा इलाके में सन् 70 के दशक में भुमिहार जाति में शुरु हुई. दबंग किस्म के परिवारों ने ऐसे युवकों को निशाना बनाया जो पढ़े लिखे थे और किसी अच्छी नौकरी में चले गए थे या फिर बड़े पैसेवाले परिवारों से थे. ऐसे युवकों को बंदूक की नोक पर उठाया जाने लगा और शादियां होने लगीं. अपहरण करने वाले चूंकि दबंग लोग थे इसलिए उनके गांव के लोगों ने भी कोई विरोध नहीं किया. इस तरह यह सिलसिला चल निकला. इस मामले को दहेज से जोड़ दिया गया ताकि समाज की सहानुभूति समेटी जा सके. धीरे-धीरे यह रोग भुमिहारों के दायरे से बाहर निकलने लगा और दूसरी जातियां भी इस तरह के अपहरण और शादी में शामिल होने लगीं. अब तो करीब-करीब पूरा उत्तर बिहार और उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा इसकी चपेट में है.

ऐसे होता है अपहरण

लड़की के परिवारवाले ऐसे किसी लड़के पर नजर रखते हैं जो अच्छे परिवार का हो, आर्थिक रूप से सक्षम हो और जिसे डराया धमकाया जा सके. इस तरह का युवक जब उनकी निगाह में आ जाता है तब वे किसी ऐसे अपराधी गुट से संपर्क साधते हैं जिसके लिए अपहरण कोई बड़ी बात नहीं होती है. गुंडों का ऐसा समूह युवक की गतिविधियों पर नजर रखता है और मौका पाते ही बंदूक की नोक पर युवक का अपहरण कर लिया जाता है. यदि युवक ने हो हल्ला मचाने की कोशिश की या मौके पर पहुंचकर शादी करने से इनकार किया तो उसकी जमकर पिटाई भी की जाती है. उसे इतने दहशत में डाल दिया जाता है कि चुपचाप शादी कर लेने के अलावा उसके पास कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचता है. शादी की तस्वीरें खींची जाती हैं. गवाह तैयार किए जाते हैं ताकि मामला यदि कोर्ट में जाए तो यह साबित किया जा सके कि युवक ने अपनी मर्जी से शादी की है. इस मामले में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि आर्थिक रूप से कमजोर तबके के बीच आमतौर पर पकड़ऊसा शादी नहीं होती है. ऐसी शादियों में वही लोग संलग्न होते हैं जो आर्थिक और सामाजिक तौर पर मजबूत होते हैं.

फिर होता है समझौता

शादी हो जाने के बाद युवक के परिवारवालों को सूचना दी जाती है कि शादी हो गई है, बहु की बिदाई के लिए आ जाएं. सामान्य तौर पर लड़के के परिवार वाले गुस्से में आ जाते हैं और दुल्हन की बिदाई के लिए तैयार नहीं होते हैं लेकिन उनकी सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि बेटा ससुराल कैद रहता है. इधर अपराधी गुट लड़के के परिवारवालों को धमकाता है और उधर लड़की के परिवावार वाले यह प्रस्ताव रख देते हैं कि मामला ले देकर सुलझा लिया जाए. चूंकि लड़के के परिवारवालों के पास बेटे की सुरक्षा का कोई दूसरा रास्ता नहीं रहता इसलिए वे सामान्यत: समझौते के मूड में आ जाते हैं और दहेज के लेनदेन के साथ समझौता हो जाता है.

लड़की बेचारी..!

आश्चर्यजनक बात यह है कि लड़की को यह पता तक नहीं होता कि किस लड़के से उसकी शादी कराई जा रही है. उसकी तो जान सूूखी रहती है. उसे पता है कि शादी के बाद ससुराल में उसे प्रताड़ना का शिकार होना ही है. घर वाले या गुंडों की फौज हर पहर तो उसकी रक्षा में वहां तैनात नहीं रह सकती! होता भी यही है. गुंडों की धमकी के आगे झुका परिवार बहु को बिदा करा कर ले जाता है लेकिन बहु की अगवानी क्रोध की ज्वाला के बीच होती है और आप कल्पना कर सकते हैं कि ससुराल पहुंचकर लड़की की हालत क्या होती होगी. मैंने ऐसे उदाहरण भी देखे हैं कि लड़की एक बार तो ससुराल चली गई लेकिन दोबारा मायके लौटी तो फिर कभी ससुराल वालों ने झांक कर नहीं देखा. खासकर जब लड़के वाले भी दबंग होते हैं तो लड़की की जिंदगी तबाह होकर रह जाती है. उसकी जिंदगी में कसक के सिवा कुछ नहीं बचता है. वह सामाजिक प्रताड़ना की शिकार होती है.

खटास भरी जिंदगी

यदि धमकी के कारण लड़के के परिवारवालों ने लड़की को स्वीकार भी कर लिया तो क्या ऐसी शादियों में पति-पत्नी के बीच रिस्ता क्या कभी सहज हो सकता है? क्या उनके जीवन में वह माधुर्य हो सकता है जिसकी कल्पना नवदंपत्ति के बीच की जाती है? क्या लड़का कभी यह भूल सकता है कि उसे बंदूक की नोक पर उठा लिया गया था और यह लड़की उसके गले बांध दी गई . आमिर खान ने जिस व्यक्ति को सत्यमेव जयते कार्यक्रम में बुलाया था, उसके जैसे कुछ अपवाद भले ही होते होंगे लेकिन ज्यादातर के लिए तो रिस्ता खटास भरा ही होता है.



लड़के नहीं जाते गांव

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जो लड़के बिहार से बाहर पढ़ रहे हैं, शादी की उम्र के हैं या जो नौकरी कर रहे हैं, वे सामान्यतौर पर अपने गांव जाने से बचते हैं. उनके परिवार को यह भय सताता रहता है कि पता नहीं वे गांव आएंगे और पकड़ऊआ शादी हो जाएगी. मेरे एक परिचित हैं जिनका लड़का एक शिपिंग कंपनी में काम करता है. पिछले चार साल से वह अपने गांव नहीं गया है. माता-पिता से मिलने के लिए वह अपनी बहन के घर जबलपुर पहुंचता है. वहीं माता-पिता भी आ जाते हैं. कुछ दिन साथ रहते हैं और लौट जाते हैं. यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा जब तक कि युवक की शादी नहीं हो जाती.

लाचार हुआ कानून

पकड़ऊआ शादी के मामले में वास्तव में कानून पूरी तरह लाचार नजर आता है. यदि कोई व्यक्ति अपने बेटे के अपहरण की रिपोर्ट भी दर्ज करा दे तो कुछ खास असर नहीं पड़ता क्योंकि जब तक पुलिस सक्रिए होगी तब तक शादी हो चुकी होती है. शादी के समय गुदगुदी लगाकर लड़के को हंसा दिया जाता है ताकि फोटो में वह खुश नजर आए और दावा किया जा सके कि लड़के ने मर्जी से शादी की है. विवाद की स्थिति में लड़की वाले दहेज मांगने का दावा कर देते हैं. लड़की के हक में बने कानूनों का दुरुपयोग करने की पूरी आजादी लड़की वालों को होती है. इस तरह कानून पूरी तरह इस मामले में लाचार नजर आता है.



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