Saturday, May 26, 2012

मैं कृष्ण कहां से लाऊं?




मेरे प्रिय

मुङो थोड़ा सुकून है कि आज का दिन तुमने मुङो समíपत किया है. तुम मेरी बातें करोगे, चिंता की बड़ी लकीरें खींचोगे, गोष्ठियां करोगे. तुम मे से बहुत से लोग मुङो बचाने की पहल का दस्तावेज तैयार करेंगे ताकि पर्यावरण की चिंता का कोई बड़ा पुरस्कार उन्हें मिल जाए!

कितना अजीब है ना यह सब?

मैं इसे अजीब इसलिए कह रही हूं क्योंकि मैं तो कभी मनुष्य दिवस नहीं मनाती? मेरा तो हर दिन तुम्हारे लिए है, हर रात तुम्हारे लिए है. मैं सूरज की तपन में तपती ही इसलिए हूं कि मेरी कोख में जीवन सदा सुरक्षित रहे. लेकिन ऐसा क्यों है कि तुम केवल एक दिन मेरे बारे में सोचते हो?

माना कि तुम मेरी गोद में पलने वाली प्रजातियों में सबसे श्रेष्ठ हो, बुद्धिमान हो, विजेता हो लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि तुम अपनी मां से भी बड़े हो गए? मां के बगैर क्या तुम जीवन की कल्पना कर सकते हो? कभी फुर्सत में सोचना मेरे इस सवाल पर! मैं जानती हूं कि तुम बहुत व्यस्त हो, तुम्हारी रफ्तार बहुत तेज है. लेकिन एक सच्चई से तुम्हे अवगत करा रही हूं कि रफ्तार जब हद से ज्यादा हो जाए तो दुर्घटना भी घटती है..बहुत बुरी और भीषण दुर्घटना होती है. तुम्हारी रफ्तार तुम्हे मुबारक लेकिन अपना खयाल जरूर रखना. मां हूं, सचेत कर रही हूं. ध्यान रखना मां की स्वस्थ मिट्टी ही तुम्हारा वजूद है.

मेरे प्रिय, अपने हृदय पर हाथ रख कर कहो, क्या कभी तुम्हे मेरे स्वास्थ्य का खयाल आता है? क्या कभी मेरी गोद में पल रही जिंदगी के बारे में सोचते हो तुम? कभी सोचा कि तुमने कि तुम्हे जन्म देने वाली तुम्हारी धरती मां का जन्म कैसे हुआ? चूंकि तुमने आज का दिन मेरे नाम मुकर्रर किया है इसलिए यह सब बातें तुमसे कर रही हूं अन्यथा तुम्हे मेरे बारे में सोचने की फुर्सत कहां है? बस रौंद रहे हो मुङो. खैर, मैं तुम्हे अपने जन्म की कहानी बताती हूं. तुम तो नौ महीने में जन्म ले लेते हो, लेकिन मुङो जन्म लेने में कई अरब साल लगे. बहुत पुराना किस्सा है. शायद कोई साढ़े चार अरब साल से भी पहले की बात है. तुम्हारी यह धरती मां अपने पिता ऊर्जा पूंज सूरज से अलग हो गई थी. कई अरब साल तक धधकती रही, बिल्कुल अपने पिता की तरह! लेकिन वक्त बहुत बलवान होता है. वक्त के साथ भीतर की ज्वाला कुछ ठंडी पड़ी तो उपर पपड़ी जमने लगी. भीतर से निकल रही गैसों ने मेरे चारों ओर इतना घना कोहरा पैदा कर दिया कि पिता की किरणों मुझ तक पहुंचनी बंद हो गईं. मेरा भीतरी हिस्सा और ठंडा हुआ तो सिकुड़न पैदा हुई और इन पहाड़ों का जन्म हुआ जो कहीं तुम्हारी सरहद का काम करती हैं तो कहीं तुम्हारे लिए हिल स्टेशन के रूप में तब्दील हो जाती हैं. वैसे तुम्हे बता दूं कि जब जब इन पहाड़ों का जन्म हुआ था तब मैं इस हालत में ही नहीं थी कि अपनी कोख में जीवन के बारे में सोच पाती.

गैसों के कोहरे में लिपटकर घटाटोप अंधेरे में डूबी थी मैं! कई करोड़ साल तक बस ऐसे ही अंधकार में पड़ी रही. बस ठंडी होती जा रही थी! फिर इतनी ठंडी हो गई और मेरे ऊपर आकाश में न जाने क्या हलचल हुई कि बारिश बन कर पानी का सैलाब टूट पड़ा. हजारों, लाखों सालों तक बारिश होती ही रही. ये तुम जो समुद्र देख रहे हो ना, उसी बारिश की देन है. बारिश में गैसों का बादल बह गया और करोड़ों साल बाद मैंने अपने पिता सूरज के दर्शन किए. तब ये ओजोन नाम की परत नहीं थी इसलिए पिता की तप्त किरणों(तुम्हारी भाषा में अल्ट्रा वायलेट रे) सीधी मुझ तक पहुंची. इन तप्त किरणों की मौजूदगी में जीवन की कहीं कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही थी. मैं सोच भी नहीं रही थी लेकिन तभी मेरी गोद में फैले समुद्र की अतल गहराहियों में कुछ हुआ और एक कोशिका के रूप में जीवन वजूद में आ गया. मैं हैरान थी. खुशियों से फूले नहीं समा रही थी, ठीक उसी तरह जैसे कोई मां गर्भधारण के बाद की स्थिति में होती है. वक्त के लंबे अंतराल में जीवन एक कोशिय से बहुकोशिए होता चला गया.

इधर समुद्र के भीतर जीवन नए-नए आकारों और स्वरूपों में साकार हो रहा था और उधर मेरे वायुमंडल के ऊपर कुछ ऐसा घट रहा था जो जिंदगी की नई तस्वीर पेश करने वाला था. आकाश में ओजोन की चादर बिछ रही थी. इस चादर के साथ ही अल्ट्रावायलेट किरणों का मेरे पास आना रुक गया. जीवन ने समुद्र के भीतर से छलांग लगाई और मिट्टी की सौंधी खुशबू में घुलमिल गया. मैं इस जीवन को करोड़ों वर्षो तक पालती रही, विकसित करती रही और तब जाकर तुम्हे यानि मनुष्य को पा सकी. मेरी गोद खिल उठी. सप्तरंगी हो गई मैं. मेरी गोद में जीवन की लाखों लाख प्रजातियां मौजूद हैं लेकिन तुम जैसा कोई नहीं! तुमने जब चांद पर छलांग लगाई तो मैं फूली नहीं समाई!

लेकिन अब बार-बार मुङो एक सपना आता है. बहुत खौफनाक सपना! तुम मुङो भस्मासुर के रूप में दिखाई देते हो. श्रेष्ठता की जंग में तुमने मेरी प्रकृति को चुनौती दे दी है. न केवल चुनौती दी है, तबाह कर रहे हो उसे. तुम क्लोरो-फ्लोरो कार्बन का इतना उत्सर्जन कर रहे हो कि मेरी कोख में जीवन को बचाए रखने वाली ओजोन की चादर झीनी हो रही है. डर है मुङो, तुम उसे किसी दिन क्षत-विक्षत कर दोगे. मेरे वायुमंडल को तुम्हारे वाहनों ने दूषित कर दिया है.

बुरा मत मानना, लेकिन सच कह रही हूं कि तुमने अपनी संख्या इतनी बढ़ा ली है कि तुम्हारे भार से दम घुटने लगा है मेरा.

अभी भी रुके कहां हो तुम? आबादी बढ़ाने में ही तो लगे हो!

तुमने मेरे सीने में इतना नाइट्रोजन भर दिया है कि मेरी उर्वरा प्रभावित हो रही है. यूरिया, फास्फेट और पता नहीं क्या-क्या भरते रहते हो मेरे सीने में और चीर कर निकाल लेना चाहते हो अपनी भूख मिटाने का अनाज! कब तक निकालोगे? किसी दिन सीना सूख गया तो? इस सीने को सुखा डालने का सारा प्रपंच तुमने ही तो रचा है. नदी-दालों के मेरे प्राकृतिक प्रवाह पर तुमने अपनी अट्टालिकाएं खड़ी कर लीं. बारिश को लुभाने वाले जंगलों को काट डाला. जीवन की कई प्रजातियों को निगल गए तुम. प्रकृति चक्र को तोड़ फोड़ दिया तुमने. तुम तो नष्ट होने पर उतारू हो ही, अपनी मां को भी तहस-नहस कर रहे हो.

मां कभी झूठ नहीं बोलती इसलिए बहुत कड़वी बात कह रही हूं-

तुम आर्थिक और भौतिक रूप से भले ही समृद्ध हो गए हो लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से कंगाली की ओर बड़ी तीव्र गति से बढ़ रहे हो.

धरती पर तुमने ऐसे हल्ला बोला है जैसे दु:शासन चीर हरण करने निकला हो! सभासद् मौन हैं!

मेरी चिंता है कि मैं कृष्ण कहां से लाऊं?

मेरे प्रिय, तुम्हारा भला चाहती हूं इसलिए भावावेश में बहुत कुछ कह गई. कोई मां अपने बच्चों को खुदकुशी करते कैसे देख सकती है?

तुम्हारी ¨ंजदगी खुशहाल हो, यही कामना है!

तुम्हारी

धरती मां

(शब्दांकन : विकास मिश्र)

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