Friday, May 25, 2012

बड़े मुर्खो के छोटे सपने!




सपने देखने के लिए मुङो कभी किसी नसीहत की जरूरत नहीं पड़ी. मैं सपने तब से देखता हूं जब अब्दुल कलाम साहब ने यह नेक नसीहत देश को नहीं बांटी थी. मैं सपने खूब देखता हूं लेकिन नींद में. मैं इस बात से कतई सहमत नहीं हूं कि जागते हुए देखे गए सपनों को पूरा करने की प्रेरणा भीतर से मिलती है. मैं पूरी तरह विज्ञान पर भरोसा करता हूं और अभी तक विज्ञान ने भीतर कोई ऐसा अंग नहीं ढूंढ़ा है जो प्रेरणा देता हो. बहरहाल रात ढ़ले जब भी मैं कोई सपना देखता हूं तो फौरन रवींद्र नाथ बहोरे की किताब खोल लेता हूं. इस किताब का नाम है ‘सपने बोलते हैं’ मैं यह जानने की कोशिश करता हूं कि मेरे सपने क्या बोल रहे हैं. खैर अभी तक पता नहीं चला कि सपनों ने कब क्या कहा? वैसे पता चल भी जाता तो अपन क्या कर लेते?

अचानक एक दिन खयाल आया कि मुर्खो के बारे में बहोरे जी की राय क्या है? पन्ने पलटे और पढ़कर दिल बाग-बाग हो गया! लिखा है- ‘अगर आप स्वप्न में किसी मूढ़ या मुर्ख को देखते हैं तो यह शुभ है. आप अपना निजी व्यवसाय आरंभ करेंगे. आपके मित्र सच्चे और वफादार होंगे. इन मित्रों से आपको लाभ भी होगा. यदि आप स्वप्न में अपने को जड़बुद्धि या मुर्ख व्यक्ति के रूप में देखते हैं तो निश्चय ही आपके भावी अनुबंध पूर्ण होंगे. उनमें आपको सफलता मिलेगी.’ बहोरे जी के इस ज्ञानपूर्ण विचार से मैं पूरी तरह सहमत हूं. सपनों की बात तो छोड़िए यह बात सामान्य जिंदगी में भी सोलह आने सच है. मुर्खो का दिखना या अनके साथ रहना इस मायने में बहुत ही फायदेमंद है कि उनसे ठगे जाने या छले जाने का कोई भय आपको नहीं होगा. मुर्खो के भीतर चालाकी नाम की फितरत नहीं होती है इसलिए आप उनका लाभ उठा पाएंगे. यदि आप जड़बुद्धि बन जाएं तो लोग आपके साथ निश्चय ही अनुबंध करना चाहेंगे क्योंकि उन्हें छले जाने का भय नहीं होगा. कहने का मतलब है कि धोखेबाजी का भय केवल बुद्धिमानों के साथ है. इसलिए मेरी राय यही है कि मुर्खो को दोस्त बनाइए और लाभ कमाइए. मुर्ख वफादार होते हैं, भरोसेमंद होते हैं, आपकी फितरतों के आसानी से शिकार हो जाते हैं. होशियार आदमी आपको धोखा दे सकता है, आपके साथ छलात्कार कर सकता है. मुर्ख दोस्त से ऐसे खतरे नहीं होते हैं. लाभ कमाने का अपना सपना आप मुर्खो के साथ पूरा कर सकते हैं. इसलिए सपनों में लगातार मुर्खो को आमंत्रित करते रहिए और मुनाफा कमाते रहिए.

वैसे एक मुर्खतापूर्ण सवाल कई बार बहुत परेशान करता है और वो ये है कि क्या मुर्ख भी सपने देखते हैं? मैंने काफी माथापच्ची की (ऐसा मैं मानता हूं) और इस नतीजे पर पहुंचा कि मुर्खो के भी सपने होते हैं. मेरा अनुभव है कि छोटे मुर्ख बड़े सपने देखते हैं और बड़े मुर्ख छोटे सपनों में उलझ कर रह जाते हैं. मसलन कि गांव की सड़क बन जाए, स्कूल में मास्टरसाहब बच्चों को पढ़ाएं, प्राइमरी हेल्थ सेंटर पर खूबसूरत नर्स हो तो डाक्टर साहब भी थोड़ा समय वहां दें, गली में नाली का पानी न बहे, नल से चौबीस घंटे पानी आए. धनिया में घोड़े की लीद न मिली हो, बाजार में पूरी तरह शुद्ध सामग्री मिले. ट्रेन लेट न हो, सड़क पर चलते समय जान जाने की फिक्र न हो! ऐसे छोटे सपने लोग देखते रहते हैं लेकिन हमारी व्यवस्था इतनी बड़ी है और उसके पास इतने बड़े-बड़े काम है कि लोगों के छोटे सपने पूरे करने का वक्त कहां है उसके पास? व्यवस्था की व्यस्तता को समङिाए और इस तरह के छोटे सपने मत देखिए! सपने देखना है तो बड़े घोटालों के सपने देखिए. बिस्तर के गद्दे में नोट भरने के सपने देखिए.

मुर्खताएं कीजिए और खुशहाल रहिए..!

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