Tuesday, October 7, 2014

डब्बे तो लगा दिए लेकिन किसी काम के नहीं!

राष्ट्रीय राजमार्ग अर्थात नेशनल हाई वे से गुजरते हुए इन डब्बों को आपने निश्चय ही देखा होगा. कहीं ये दो किलो मीटर पर लगे हैं तो कहीं डेढ़ किलो मीटर पर! दर्जनों वाहन चालकों से लोकमत समाचार ने जानना चाहा कि ये डब्बे सड़क किनारे क्यों लगाए गए हैं? ज्यादातर लोगों ने माना कि डब्बे वे देखते हैं और उनके मन में भी यही सवाल उठता है कि ये क्यों लगाए गए हैं? लोगों ने यह भी माना कि कभी उन्होंने रुककर यह जानने की कोशिश नहीं की कि ये हैं क्या? ऐसे लोगों की संख्या नगण्य थी जिन्हें डब्बों के बारे में कुछ जानकारी थी! दरअसल इन डब्बों को स्थापित करने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने इस बात की जरूरत ही नहीं समझी कि इनके बारे में आम आदमी को जानकारी कैसे दी जाए. विदेश की तर्ज पर इन्हें बना तो दिया गया लेकिन प्रचार-प्रसार की कोई व्यवस्था नहीं की गई.
अब चलिए हम आपको बताते हैं कि ये हैं क्या और इन्हें स्थापित करने का कारण क्या है! इन डब्बों को कहा जाता है ‘एसओएस’ बूथ. एसओएस एक अंतरराष्ट्रीय एब्रीविएशन अर्थात एक स्थापित वाक्य का संक्षिप्त स्वरूप है. इस एब्रिविएशन के सामान्यत: तीन पूर्ण वाक्य बनते हैं. 1. सेव आवर शिप यानि हमारे जहाज को बचाईए. 2. सेव ऑवर सोल यानि मेरी आत्मा को बचाईए. 3. सेंड आउट सकर यानि राहत भेजिए. राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगे डब्बे राहत ेभेजने या आत्मा बचाने यानि जान बचाने से संबंधित है.
कांग्रेस की पिछली सरकार के जमाने में मंत्री कमलनाथ ने इस बात के लिए पहल की कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर दुनिया के  िवकसित देशों की तरह हर डेढ या दो किलो मीटर पर सड़क के दोनों ओर एसओएस बूथ होने चाहिए ताकि दुर्घटना की जानकारी तत्काल कंट्रोल रूम को मिल सके. योजना यह थी कि कंट्रोल रूम तत्काल निकटतम टोल प्लाजा को जानकारी पहुंचाएगा ताकि वहां से अत्यंत कम समय में एंबुलेंस घटनास्थल पर पहुंच जाए. इससे दुर्घटना में घायल  व्यक्ति को तत्काल मेडिकल सहायता मिले और उसकी जान बचाई जा सके. इसे नियमों में शामिल किया गया और  वर्ष 2011 के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर ऐसे बुथ बनने शुरु हो गए. यह भी प्रावधान किया गया कि लोग सड़क की हालत के बारे में भी जानकारी दे सकते हैं और ऐसी शिकायतों को संबंधित अधिकारियों तक पहुंचाया जाएगा ताकि सड़क जल्द दुरूस्त हो. इसे राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की वेबसाइट पर भी अपलोड करने की योजना बनी.
एक भी बूथ काम का नहीं
लोकमत समाचार ने यह जानने की कोशिश की कि नागपुर के पास बने एसओएस बूथ वाकई काम कर रहे हैं या नहीं! नागपुर से हैदराबाद जाने वाले मार्ग पर बहुत से एसओएस बूथ के भीतर के कलपुर्जे गायब थे. कुछ सही सलामत दिख रहे थे लेकिन उनका बटन दबाने पर कोई जवाब नहीं मिला. दरअसल बूथ के बाहर एक बटन होता है जिसे आप दबाएंगे तो वह कंट्रोल रूम के संपर्क में आ जाता है. वहां से सीधी बात होनी चाहिए. इस बाबद जब लोकमत समाचार ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के एक वरिष्ठ अधिकारी से बात की तो उन्होंने माना कि बूथ काम नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आम आदमी में इनके प्रति जागरूकता नहीं है और कुछ मनचले इसे तोड़ देते हैं. अधिकारी ने यह भी बताया कि चूंकि सड़क निर्माण के साथ इसका निर्माण भी शामिल था इसलिए ये बन गए हैं लेकिन हकीकत तो यही है कि अभी ये काम नहीं आ रहे. इनके काम करने की पद्धति भी बहुत पुरानी है. अधिकारी का कहना था कि अब मोबाइल का जमाना है, लोग उसी का उपयोग करते हैं. हां, नागपुर-बैतूल मार्ग पर एक निजी कंपनी के साथ मिलकर इस तरह के बूथ चलाने का प्रस्ताव प्राधिकरण को भेजा गया है लेकिन अभी तक कोई जवाब नही आया है.
टोल प्लजा पर एंबुलेंस नहीं
सामान्यतौर पर टोल प्लाजा से गुजरते हुए एंबुलेंस शायद ही किसी टोल प्लाजा पर दिखाई देता हो. यदि एसओएस बूथ स्थापित करने की योजना को आधार माना जाए तो हर टोल प्लाजा पर एक एंबुलेंस जरूर होना चाहिए जो दुर्घटना की स्थिति में तत्काल पहुंच सके. जाहिर सी बात है कि जब एसओएस बूथ ही काम नहीं कर रहा है तो एंबुलेंस की जरूरत ही क्या है? लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने कुछ जगह इमरजेंसी नंबर वाले बोर्ड लगा रखे हैं. यदि हर टोल प्लाजा पर एंबुलेंस हो तो इन नंबरों के माध्यम से भी जल्दी मेडिकल राहत पहुंच सकती है.
अब जरा वहां का हाल..!
दिल्ली में एक आरटीआई कार्यकर्ता को इन एसओएस बूथ का खयाल आ गया. उसने जानकारी मांग ली कि दिल्ली-गुड़गांव हाईवे पर कितने लोगों ने एसओएस बूथ का इस्तेमाल किया? जवाब मिला कि दो साल में दुर्घटनाएं तो हुईं लेकिन हर दो किलो मीटर पर एक बूथ होने के बावजूद किसी ने उनका उपयोग ही नहीं किया!

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