Wednesday, August 10, 2016

थोड़ा सा काम हुआ है, अभी बहुत है बाकी!


वाराणसी, 25 मई।
वाराणसी इस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आश्वासनों की लंबी फेहरिस्त देखकर चकराया हुआ है. लोग मोदी से चमत्कार की उम्मीद किए बैठे थे लेकिन वाराणसी शहर में कोई चमत्कार दिखाई नहीं दे रहा है. परिवर्तन है केवल सफाई की. रात ढ़लते ही सफाई शुरु हो जाती है लेकिन सड़कों का वही पुराना हाल है. सड़कों को चौड़ा करना मुश्किल काम है. ऐसे में क्या वाकई परिवर्तन हो पाएगा?
इसी शहर में जन्में और पले बढ़े राजेश कुमार बता रहे हैं कि आंकड़े तो बहुत बड़े बड़े हैं लेकिन सवाल है कि ठीक से काम भी तो प्रारंभ होना चाहिए. एक साल बीत गए हैं. इस बीच ड्रेनेज की समस्या का निदान निकाला जा सकता था लेकिन अभी इस मामले में कुछ खास नहीं हुआ है.बुनकरों के लिए ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर की नींव पिछले साल प्रधानमंत्री ने रखी थी लेकिन काम अभी तक शुरु नहीं हुआ है.  उस पर एक ईंट नहीं रखी जा सकी है. शहर का गंदा पानी अभी भी गंगा में मिल रहा है. मेयर रामगोपाल मोहले कहते हैं कि करधना का वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट इस साल शुरु हो जाएगा लेकिन हकीकत यह है कि यह प्लांट 2012 से बनकर तैयार है लेकिन अभी तक इसे प्रारंभ नहीं किया जा सका है.
चेतगंज की अनुप्रिया मोदी की फैन हैं लेकिन अब उन्हें भी यह डर सताने लगा है कि सभी वादें शायद ही पूरे हो पाएं क्योंकि वाराणसी में जो रफ्तार दिखाई देनी चाहिए वह दिखाई नहीं दे रहा है. वे कहती हैं कि बहुत सी जगह पर सड़कें खाद दी गई हैं, अब बारिश आने वाली है, जरा सोचिए कि हमारी हालत क्या होगी. उनकी सहेली रश्मि को भी मोदी के सभी वादे पूरे होने में शंका है. वे तो मोदी की फेहरिस्त ही गिना देती हैं. वे मुझसे ही सवाल पूछती हैं कि मेट्रो, मोनो रेल, 6 लेन वाला हाईवे, फ्लाई ओवर्स, रिंग रोड, सैटेलाइट टाउन जैसे प्रोजेक्ट यदि इस शहर में आने हैं तो कहीं कोई सुगबुगाहट तो होनी चाहिए कि नहीं?  हां, वे भी शहर की सफाई की तारीफ करती हैं.
अस्सी रोड पर नरेंद्र मोदी का संसदीय कार्यालय है. रविवार को कार्याय बंद रहता है. सोमवार को भी इसके प्रमुख शिवशरण पाठक यहां मुलाकात नहीं हो पाई लेकिन उनके कार्यालय में हर रोज 50 से 60 शिकायतें आती हैं. ज्यादातर शिकायतें सड़कों को लेकर है कि खुदाई हो गई है लेकिन गड्ढे नहीं भरे जा रहे हैं.

गाय से पूछते हैं
रस्ता देबू?
टिपिकल बनारसी आदमी गाय को सड़क से भगाएग नहीं. यदि कहीं गऊ माता इस तरह खड़ी हों कि गली में जाना मुश्किल हो जाए तो वह आदमी गाय से कहेगा- रस्ता देब? कमाल की बात है कि गाय रास्ता भी दे देती है. मैंने कई बार इस तरह के दृष्य देखे. गाय सड़कों को घेर कर बैठी रहती हैं. ये शहर के लिए सबसे बड़ा संकट हैं. इन्हें हटाने पर यहां के लोग ही राजी नहीं हैं. गल्ले की दुकान चलाने वाले किसुन लाल कहते हैं कि गऊ माता शहर की संस्कृति का हिस्सा हैं. इन्हें परेशान नहीं करना चाहिए.

न अस्सी बची है और न वरुणा
वाराणसी नाम के पीछे दो नदियों के नाम हैं. वरुणा और अस्सी. शहर मे वरुणा का तो मुङो कहीं वजूद नहीं मिला. अस्सी एक जगह नाले के रूप में मिल गई. लोगों ने वरुणा और अस्सी नदी को अतिक्रमित कर लिया है. इसे हटा पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है. ये नदियां  अब नाले के रूप में गंगा में जाकर मिल जाती हैं.

डीएम साहब को धन्यवाद
एयर पोर्ट की तरफ जाने वाले मार्ग पर मैं अपने कार चालक अमित से पूछता हूं कि यह शड़क तो बहुत अच्छी है? मोदी के आने के बाद बनी है क्या? अमित बताते हैं कि चुनाव के समय डीएम प्रांजल यादव को बार-बार इस सड़क पर आना-जाना पड़ता था. उन्होंने सड़क बनवा दी. धन्यवाद डीम को देना चाहिए, मोदी को नहीं!

उफ् इतनी भीड़ भाड़!
वाराणसी शहर में घूमते हुए यहां की भीड़ भाड़ आदमी को चकरा देती है. आंकड़ों के लिहाज से देखें तो यहां प्रतिवर्ग किलो मीटर में 2400 लोग रहते हैं. पर्यटकों की संख्या इसमें शामिल नहीं है. तुलना के लिए आपको दो आंकड़ें और बताता हूं ताकि आपको पता चल सके कि कितनी सघन आबादी है. नागपुर में प्रति वर्ग किलो मीटर 470, औरंगाबाद में 286 और पुणो में 603 लोग रहते हैं. वाराणसी की यह सघन आबादी समस्याओं को और बढ़ाती है. शहर अब भी गंदगी के आगोश में है. इससे निपटना आसान नहीं है.

आंख मिचौनी कम हुई है
पिछले चुनाव से पहले या चुनाव के दौरान भी वाराणसी में बिजली की स्थिति ठीक नहीं थी. बमुश्किल 7 से 8 घंटे ही बिजली रहती थी. अब हालात बदले हैं. चौबीस घंटे में से 18 से 20 घंटे बिजली मौजूद रहती है. हालांकि वाराणसी संसदीय क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों मेंअभी भी दस घंटे से ज्यादा बिजली नहीं मिल रही है.

कचरा जाता कहां हैं?
बनारस में प्रतिदिन 400 मिलियन लीटर कचरा प्रतिदिन जेनरेट करता है.  शहर में केवल 3 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं जहां केवल 102 मिलियन लीटर कचरे का ट्रीटमेंट हो पाता है. तो सवाल है कि बाकी कचरा जाता कहां है?

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