Wednesday, August 10, 2016

घाटों की तो मानों तकदीर बदल गई है!

वाराणसी, 23 मई।
कोई वारणसी आए और घाटों पर न जाए यह हो ही नहीं सकता! इन घाटों से मेरी पुरानी पहचान है लेकिन इस बार मैं यह देखने और आप तक यह जानकारी पहुंचाने आया हूं कि यहां की तस्वीर कितनी बदली है? यह प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है और उन्होंने घाटों की सफाई का संकल्प लिया हुआ है. बनारस लाइव का पहला सफर शुरु करते हैं इन घाटों के किनारे..!
मैं इस  वक्त दशाश्वमेघ घाट पर हूं. यह घाट वाराणसी के सबसे प्रमुख घाटों में से एक है और सबसे ज्यादा भीड़ भाड़ यहीं रहती है. पर्व त्यौहार के दिनों में यहां 2 लाख से ज्यादा लोग हर रोज स्नान करते हैं. इसलिए इसकी साफ-सफाई सबसे कठिन काम है. करीब दो साल पहले जब मैं यहां आया था तो इस घाट पर नहाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई थी. तब घाट के ठीक नीचे कचरा तैर रहा था. स्नान के लिए मुङो नाव लेकर गंगा के दूसरे किनारे पर जाना पड़ा था लेकिन इस साल मैंने अभी-अभी इसी घाट पर स्नान किया है. यह है बनारस के इस घाट की बदलती हुई तस्वीर! इसे हम चमत्कार भले ही न कहें लेकिन उम्मीद की किरण तो दिखाई जरूर देने लगी है. दशाश्वमेघ घाट पर पहुंचने वाले रास्ते भी बिल्कुल साफ सुथरे नजर आने लगे हैं. गोदौलिया चौक पर ठंडाई की दुकान चलाने वाले राजू केसरी ने मुझसे कहा है कि मोदी ने घाट किनारे सफाई का कमा तो दिखा दिया है.

वाराणसी में प्रमुख रूप से अस्सी घाट हैं. पहला है आदिनाथ घाट और अंतिम है अस्सी घाट. चलिए अब अस्सी घाट की ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सफाई की शुरुआत की थी. नाव से यह सफर करीब एक घंटे का है. दरभंगा घाट, राना महल घाट, राजा घाट और भी बहुत सारे घाट. सारे घाटों के किनारे लोग नहाते हुए नजर आ रहे हैं. पिछली बार जब मैं आया था तब इन घाटों पर गंदगी इतनी थी कि नहाने की कोई हिम्मत ही नहीं कर सकता था. अब पानी मे गंदगी दिखाई नहीं दे रही है. मेरा नाव वाला रमेश शंकर कह रहा है कि पानी साफ है तो कोई अब गंदगी फेंकता भी नहीं है. यहां आने वालो का रवैया बदला हुआ है. हर कोई वारणसी के घाटों को स्वच्छ देखना चाहता है. गंगा को साफ देखना चाहता है. साफ सफाई देखकर वाकई दिल खुश हो रहा है और दिल चाह रहा है कि गंगा का पानी भी निर्मल हो जाए. तभी मेरी नजर जाती है राजा घाट के पास ड्रेनेज की एक मोटी पाइप पर जिसमें से थोड़ा ही सही लेकिन ड्रेनेज का पानी आ रहा है. वहीं एक व्यक्ति शौच भी कर रहा था. मेरे नाव वाले ने कहा कि इनका समझावें मोदी अईहें का?



काशी का अस्सी!
अब हम आ पहुंचे हैं अस्सी घाट . यह लेखकों, कवियों, कलाकारों और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के विद्वानों का पसंदीदा घाट है. कला और संस्कृति का यहां जमघट होता है इसीलिए नरेंद्र मोदी ने सफाई की शुरुआत यहीं से की. दशश्वमेघ घाट की तुलना में यहां भीड़ कम है. सफेद दुधिया रोशनी से पूरा घाट नहाया हुआ है. अस्सी घाट पर औसतन 300 लोग प्रति घंटे आते हैं. पर्व त्यौहारों के अवसर पर यह संख्या 2500 प्रति घंटे तक पहुंच जाती है. यहां एक साथ 22500 लोग जमा हो सकते हैं. मैं  यहां विदेशी पर्यटकों की भीड़ देख रहा हूं. तभी मेरी नजर जाती है वहं पास मे खुदाई कर रही मशीनों पर. मशीन दूसरे घाट पर है लेकिन वह भी अस्सी का ही हिस्सा है. पता चलता है कि यहां दिन और रात काम चल रहा है. यहां 26 मई को मोदी सरकार की सालगिरह पर कार्यक्रम होने वाला है.
मैं अभी उस पप्पू चायवाले की दुकान पर जाना चाहता हूं जो नरेंद्र मोदी के चुनाव में उनके नामांकन का एक प्रस्तावक था. पप्पू की दुकान खानदानी है और दुकान की उम्र 100 साल से उपर हो चुकी है. इसी घाट के नाम पर प्रसिद्ध लेखक काशिनाथ सिंह ने ‘काशी का अस्सी’ नॉवेल भी लिखा है. फिलहाल वक्त इजाजत नहीं दे रहा है. रिपोर्ट  फाइल करनी है. चलिए लौटते हैं. पप्पू की चाय इसी यात्र में किसी दिन पीएंगे.
लौटते हुए मुङो हिंदी साहित्यकार केदारनाथ सिंह की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं. वाराणसी के बारे में बहुत सटीक लिखा है..
इस शहर में धूल
धीरे-धीरे उड़ती है.
धीरे-धीरे चलते हैं लोग
धीरे-धीरे बजते हैं घंटे
शाम धीरे-धीरे होती है

इस धीमी चाल वाले शहर में कम से कम घाटाों पर तो विकास की रफ्तार धीरे नहीं है. शहर भी घूमेंगे और देखेंगे कि वहां तस्वीार कितनी बदली है?


अब मोटरबोट पर लाशें
वाराणसी के घाट वाले इलाके की बड़ी समस्या रही है शव यात्रएं. हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि जिसकी मौत काशी में होती है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है. यही कारण है कि बड़े बुजूर्ग मोक्ष की चाहत में यहां खिंचे चले आते हैं. वे घाट किनारे की धर्मशालाओं में जिंदगी की अंतिम घड़ी का इंतजार करते हैं. जाहिर है कि वाराणसी में दिवंगत होने वालों की संख्या ज्यादा होगी ही. पहले मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट की ओर जाने वाली सड़क पर दिन भर शव यात्रएं निकलती रहती थीं. दुकानदार से लेकर सड़क पर चलने वाले तक परेशान होते थे. ट्रेफिक जाम होता रहता था. अब हालात बदल गए हैं. अब शव या तो मोटरबोट से ले जाए जाते हैं या फिर शव वाहन से. 5 शव वाहनों की व्यवस्था की गई है.  इसके लिए नव गठित संस्था‘मुक्ति मित्र’ काम कर रही है. गुजरात के उद्योगपति सुधांशु मेहता ने यह संस्था खड़ी की है.

नहाने से तलाक!
नारद घाट से गुजरते हुए मुङो इस घाट के बारे में फैेले एक वहम की याद आ गई पर अमूमन पति पत्नी कभी स्नान नहीं करते. इसका कारण एक बहुत बड़ा वहम है. वहम यह है कि यदि पति पत्नी नारद घाट पर स्नान कर लें तो उनका तलाक हो जाता है! गजब का वहम है यह! हां, कुंवारे लोग यहां स्नान जरूर करते हैं. 

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