Monday, September 21, 2015

फंसा तो फंसा..नहीं तो श्रप दे दिया!

सुबह करीब 11 बजकर 12 मिनट पर फोन क्रमांक 9044012551 से मेरे मोबाइल पर फोन आता है. एक महिला की सुरीली आवाज सुनाई देती है. वह कह रही हैं- ‘मैं काशी विश्वनाथ मंदिर से बोल रही हूं. यहां प्रत्येक 12 साल पर एक विशेष यज्ञ होता है. चुनिंदा भक्तों को एक मुखी रुद्राक्ष प्रसाद के रूप में दिया जाता है. महाराष्ट्र से जिन 11 भाग्यशाली लोगों का चयन इस साल हुआ है, उसमें आप भी एक हैं. इस रुद्राक्ष की इतनी महत्ता है कि यह न केवल आपके बल्कि आपके पूरे परिवार और आने वाली पीढ़ियों के सारे दुख हर लेगा. फिर पूरी जिंदगी किसी तरह के ज्योतिष रत्न खरीदने की जरूरत नहीं रहेगी. यह रुद्राक्ष प्राप्त करने के लिए आपको अपना नाम, पता और परिवार के सदस्यों का नाम लिखाना पड़ेगा. लिखा दीजिए.’
वे रुद्राक्ष का महिला गान कर रही हैं. मैं पूरी बात सुनता हूं और उनसे पूछता हूं कि इसके लिए धन कितना देना होगा. वे बताती हैं- ‘सामान्यतौर पर एक मुखी रुद्राक्ष की कीमत पांच से छह हजार रुपए होती है लेकिन आपका विशेष चयन हुआ है, इसलिए आपको केवल 1596 रुपए देने होंगे. यज्ञ के बाद रुद्राक्ष के साथ और भी चीजें भेजी जाएंगी.’ अब मैं उनसे पूछता हूं कि आप काशी विश्वनाथ मंदिर में क्या हैं? वे बात टाल रही हैं. मैं कहता हूं कि वहां के मुख्य पुजारी से बता करवाईए. किसी मंदिर का प्रबंधन इस तरह की मार्केटिंग कैसे कर सकता है? मैं उन्हें जैसे ही बताता हूं कि मैं पत्रकार हूं, वे बिफर जाती हैं और श्रप देने के अंदाज में फोन पर फरमान सुना देती हैं- ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि, तुम्हारा कभी कल्याण नहीं होगा!’ फोन बंद हो जाता है. मैं सोच रहा हूं धर्म के नाम पर इस तरह का धंधा कब तक चलता रहेगा. क्या इसके लिए कोई कानून बनेगा?

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