Monday, September 21, 2015

आजाद भारत कई सवाल!

कनाडा में रहने वाले पाकिस्तानी मूल के पत्रकार तारेक फतह इन दिनों बहुत चर्चा में हैं. बेहद जज्बाती, अत्यधिक निडर और अपनी बेबाकी के लिए दुनिया भर में मशहूर हो रहे तारेक फतह एक किताब लिखने के सिलसिले में भारत आए थे. यहां से लौटने के बाद उन्होंने कनाडा के टैग टीवी को एक लंबा इंटरव्यू दिया. अपने इंटरव्यू में उन्होंने पाकिस्तान को बहुत खरी खोटी सुनाई है. उसके वजूद पर ही सवाल उठा दिए हैं इसलिए भारतीय दर्शकों को बहुत मजा आया है. इस इंटरव्यू के छोटे-छोटे टुकड़े व्हाट्सएप पर भी चल रहे हैं और सब मजे ले रहे हैं कि एक पाकिस्तानी मूल के पत्रकार ने अपने देश को क्या खरी खोटी सुनाई है!

इंटरव्यू के उस चेप्टर पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है कि तारेक फतह ने भारत के बारे में क्या कहा है? दरअसल भारत के बारे में हम सुनना कहां चाहते हैं? हमने तो बस एक सुर  लगा रखी है-‘मेरा भारत महान!’ सुर लगाने में हर्ज नहीं है लेकिन जब हम सच्चई से बचने के लिए शुतुमरुर्ग की तरह रेत में अपनी गर्दन घुसा लेना चाहते हैं तब कोफ्त होती है और आजादी के अराजक होने का दर्द सालने लगता है. तारेक फतह का कहना है कि हिंदुस्तान में जितनी गैर-बराबरी है, उतनी दुनिया के किसी भी देश में नहीं है! बात वो बिल्कुल सही कह रहे हैं. हम खुद से ही पूछें कि क्या अपने समाज में बराबरी है? क्या हमारा समाज धर्म और जाति से ऊपर उठने की कोई कोशिश भी कर रहा है? शहरीकरण ने भारत के बड़े हिस्से को छुआछूत से मुक्त जरूर करा दिया है लेकिन गांवों में जाकर देखिए कि हालात क्या है? अभी भी जातियों के हिसाब से टोले यानि मोहल्ले बने हुए हैं. मोहल्ले भी पास-पास नहीं, दूर-दूर हैं! क्या एक जाति का व्यक्ति दूसरी जाति के मोहल्ले में बसने के बारे में सोच सकता है? बिल्कुल नहीं! फिर सवाल खड़ा होता है कि इस वर्ण व्यवस्था से हमें कैसे मुक्ति मिलेगी?

विकास के पहिए 
में जाति का जंग
भारत सरकार ने जनगणना में यह जानने की कोशिश की कि देश में किस जाति के कितने लोग रहते हैं. जनगणना हो गई तो उसके आंकड़े जारी नहीं किए. अब लालूप्रसाद यादव जैसे जाति की राजनीति करने वाले नेता आंकड़े मांग रहे हैं. सवाल यह है कि जाति के आधार पर जनगणना की जरूरत ही क्या थी? एषसी जनगणना और उसके बाद मचे हो हल्ले से जाति का जंग फैलता है और विकास के पहिए पर उसका असर भी होता है! देश को चाहिए जाति की जंग से आजादी!

धर्म का धंधा बना
देश का जंजाल
यह स्वीकार करने में किसी को कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि धर्म का धंधा देश में खूब फल-फूल रहा है और यह देश के लिए जंजाल साबित हो रहा है. कई टीवी चैनल तो बाबाओं को ही समर्पित हैं. दरअसल यह पूरा प्रसंग व्यापार का है. अंधभक्ति का जहर इस तरह से लोगों के भीतर उतारा जा रहा है कि वो व्यापार को समझ ही नहीं पा रहे हैं. पीके के शब्दों में कहें तो आदमी के डर को खूब भुना रहा धर्म का यह धंधा! देश को चाहिए धर्म के धंधे से आजादी!

अंधेरे में तीर जैसी
है हमारी पढ़ाई!
कुछ स्पेश्लाइज्ड कोर्स को छोड़ दें तो हमारी पूरी पढ़ाई व्यवस्था अंधेरे में तीर चलाने जैसी है. इस बात की कोई जानकारी आज के युवा को नहीं है कि अगले पांच या दस सालों में देश को किस तरह के कितने विशेषज्ञों, कारीगरों, अधिकारियों, तकनीशियनों, वैज्ञानिकों, शिक्षकों की जरूरत होगी! देश की ओर से युवाओं को इस मामले में कभी संबोधित भी नहीं किया जाता. नतीजा है कि निजी संस्थानों की पूरी दुकान चल रही है. हमें ऐसी पढ़ाई चाहिए जो दुनिया में हमें अव्वल बनाए!

देश युवा तो है, लेकिन 
युवाओं की दशा कैसी?
इस वक्त भारत दुनिया का सबसे युवा देश माना जा रहा है यानि युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है लेकिन यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि हमारा युवा स्वास्थ्य की दृष्टि से दुनिया में अव्वल नहीं है. कुपोषण से लेकर मोटापे तक के बीच डायबिटीज अपनी जगह बना चुका है. दूसरी ओर वर्जिश तो जिंदगी से कम हो ही रही है. नशे के सौदागर हमारे युवाओं को अपनी चपेट में ले रहे हैं. हालात बिल्कुल ठीक नहीं हैं. देश को अव्वल बनाना है तो हमें नशे से आजादी चाहिए.

नंबरों की होड़ में
संस्कारों का टोटा
अब्दुल कलाम के प्रति सबके भीतर आदर का भाव रहा लेकिन कलाम की बात पर किसी ने भी भरोसा नहीं किया. वे कहते थे कि क्लास में पिछली बेंच पर भी ‘अच्छा दिमाग’ मिल सकता है. हमने दिमाग पर ताक पर रख दिया और बच्चों के बीच नंबरों की होड़ लगा दी. 97 प्रतिशत लाने वाला बच्च भी अफसोस करता है कि उसे 99.9 क्यों नहीं मिले. माता-पिता इस होड़ में इस कदर शामिल हैं कि उन्हें बच्चों के संस्कारों की समझ ही नहीं. इस होड़ से बच्चों को आजाद कीजिए.

पार्टियों से ऊपर 
क्यों नहीं है देश?
सभी पार्टियां दावा करती हैं कि वे भारत को बेहतरीन देश बनाना चाहती हैं. हम कभी इन पर तो कभी उन पर भरोसा करते हैं लेकिन वे एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते. दोनों ही देश को रसातल में पहुंचाने का आरोप लगाते हैं. देश का बच्च-बच्च यही सोचता है कि जब सभी पार्टियां देश को आगे ले जाना चाहती हैं तो समस्या क्या है? समस्या यह है कि सभी पार्टियों को सत्ता की भूख है. भूखी पार्टियां देश का क्या भला कर सकती हैं? सत्ता की भूख से देश को आजादी चाहिए.

लाख कोशिश की मगर
भ्रष्टाचार नहीं मिटा!
देश की सभी पार्टियां भ्रष्टाचार की खिलाफत करती हैं. हर आदमी इसके खिलाफ है लेकिन ये भ्रष्टाचार पता नहीं कैसी चीज है कि इसकी हस्ती मिटती ही नहीं है. इस देश का आम आदमी बड़े भ्रष्टाचार से कम, छोटे भ्रष्टाचार से ज्यादा परेशान है. सत्ता से हर आदमी की यही गुहार है कि कुछ ऐसा कीजिए कि राशन दुकान का भ्रष्टाचार मिट जाए, गैस कनेक्शन में भ्रष्टाचार मिट जाए. बाबुओं के चक्कर न काटना पड़े. यदि देश भ्रष्टाचार से आजाद हो गया, सच्ची आजादी मिल जाएगी.

मैदान मिटे, खेलने की
आजादी भी मिट गई
‘जब मैं बच्च था तब मेरे घर के पास खेल का एक मैदान हुआ करता था. हम सभी बच्चे शाम को धमाचौकड़ी करते और पसीने से लथपथ घर लौटते. अब वहां मैदान नहीं है. बिल्डिंग बन गई है. बच्चे अब पसीने से लथपथ नहीं होते. वे घर में बैठकर इंटनेट पर गेम खेलते हैं.’ यह कहानी हर व्यक्ति की है. वाकई अब खेल के मैदान कम ही दिखाई देते हैं. सीधे शब्दों में कहें तो बच्चों से खेलने की आजादी छिन गई है. बच्चों को खेलने की यह आजादी कौन वापस दिलाएगा?

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