Monday, June 20, 2016

आलोक सागर

आलोक सागर पिछले 25 साल से ज्यादा समय से मध्यप्रदेश के घोड़ाडोंगरी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले शाहपुर विकासखंड के कोचामऊ गांव में एक आदिवासी की तरह रह रहे हैं. गांव और इलाके के लोग उन्हें सेवाभावी एक्टिविस्ट के रूप में जानते थे. उनकी वास्तविक शैक्षणिक हैसियत का किसी को पता नहीं था.  पिछले तीस साल से उनकी डिग्रियां झोले में पड़ी थीं लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि डिग्रियां बाहर आ गईं.
घोड़डोंगरी विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है. 30 मई को चुनाव होने वाले हैं.  इसी दरम्यान पुलिस को खयाल आया कि जो भी बाहरी लोग यहां रह रहे हैं, उन्हें इलाके से खदेड़ा जाए! फरमान आलोक सागर तक भी पहुंचा. एक पुलिस वाला धमकी देकर आया कि इलाका छोड़ दो नहीं तो जेल में डाल देंगे. इस धमकी के बाद आलोक सागर पुलिस थाने जा पहुंचे और बातचीत के दौरान जब अपने बारे में बताया तो पुलिस भी हैरान रह गई!
उनके पिता भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी थे और मां दिल्ली मिरांडा हाउस में फिजिक्स की प्रोफेसर थीं. आलोक सागर ने 1973 में आईआईटी दिल्ली से एमटेक करने के बाद 1977 में ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी टेक्सास अमेरिका से शोध डिग्री ली. इसी यूनिवर्सिटी से डेंटल ब्रांच में पोस्ट डॉक्टरेट करने के बाद उन्होंने समाजशास्त्र विभाग डलहौजी यूनिवर्सिटी कनाडा में फैलोशिप पूरी की. भारत लौटने के बाद वे आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर हो गए. कुछ समय तक प्रोफेसर रहने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और समाज सेवा की ओर मुड़ गए. वे आदिवासियों की जिंदगी को सहज बनाना चाहते थे. 1990 के आसपास वे कोचामऊ पहुंचे और आदिवासियों के बीच अपनी नई जिंदगी शुरु की. धीरे-धीरे वे आदिवासियों के बीच घुल मिल गए. उन्होंने अपने उच्च शिक्षित होने की बात इसलिए छिपा ली. उन्होंने आदिवासियों की जिंदगी बदलने के काम शुरु किया. अभी तक वे 50 हजार से ज्यादा फलदार पौधे लगा चुके हैं जिसका सारा फायदा गांव के आदिवासियों को मिलता है. वे एक झोपड़ी में रहते हैं और कुएं से खुद बाल्टी भर कर पौधों को पानी देते हैं. गांव में लगे चीकू, लीची, अंजीर, नीबू, चकोतरा, मौसबी, किन्नू, संतरा, रीठा, मूनगा, आम, महुआ, आचार, जामुन, काजू, कटहल, सीताफल के पेड़ फल देने लगे हैं.
वे एक झोपड़ी में रहते हैं, साइकिल से आसपास का इलाका घूमते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं. बहुभाषी होने के साथ आदिवासी भाषा जानने वाले आलोक सागर का मानना हैं कि उनकी पढ़ाई और डिग्री को वे बता देते तो आदिवासी उनसे दूरी बना लेते. खुद हाथ से आटा पीसकर जीवन जीने वाले आलोक सागर के छोटे भाई अंबुज सागर आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर हैं एक बहन कनाडा में तो एक बहन जेएनयू में कार्यरत थी. 

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