Monday, June 20, 2016

बेईमानी आखिर किस सीमा तक?

दो  घटनाएं एक के बाद एक हुईं. दोनों घटनाएं बिल्कुल अलग किस्म की हैं लेकिन दोनों की बुनियाद एक है. कोलकाता में अचानक एक पुल का निर्माणाधीन हिस्सा गिर गया. कुछ लोग मर गए, बहुत से लोग घायल हो गए. कुछ दिनों तक हो हल्ला मचेगा. फिर सबकुछ शांत हो जाएगा. दूसरी घटना कर्नाटक की है जहां दसवीं का पर्चा दो बार लगातार दूसरी बार लीक हो गया. 40 लोगों को सस्पेंड कर दिया गया है. यह मामला भी कुछ दिनों में खत्म हो जाएगा. जिस तरह से हम दूसरी घटनाओं को भूल जाते हैं, उसी तरह इन घटनाओं को भी भूल जाएंगे. लेकिन इन दोनों घटनाओं ने एक बार फिर हमारे सामने यह सवाल तो खड़ा कर ही दिया है कि बेईमानी आखिर किस सीमा तक?
छोटी मोटी बेईमानी हमारे जीवन का हिस्सा बन चुका है और हम भले ही थोड़ा नाक भौं सिकोड़ लें लेकिन हकीकत यही है कि बेईमानी को हम करीब-करीब स्वीकार भी कर चुके हैं. जिसे जहां मौका मिल रहा है, थोड़ी डंडी तो मार ही रहा है. कहीं कोई ग्राहकों को लूट रहा है तो कहीं कोई इनकम टैक्स बचाने की जुगत में लगा रहता है. ऐसी बेईमानी जब बड़े स्तर पर रंग दिखाती है तो कोई पुल अचानक ढह जाता है और बेकसूर लोग मारे जाते हैं. बेईमानी करने वाला पुल के नीचे कभी नहीं दबता और न कभी सिनेमा हॉल में जलता है. वह तो कानून की बड़ी-बड़ी किताबों को कवच बना लेने की जुगत में लगा रहता है. ‘न्याय दिलानेवालो’ की बड़ी फौज न्याय को लंबा खींचती रहती है. तब हमारे आपके जैसे लोगों को कोफ्त होतीहै और हम इस बात पर खीझते रहते हैं कि न्याय का मजाक क्यों बनाया जा रहा है.
बहरहाल पुल गिरना, सड़क का बह जाना, बिल्डिंग कोलैप्स होजाना जैसी घटनाएं शायद उतनी खतरनाक नहीं हैं जैसी कि कर्नाटक की घटना है! अबकी बार तो ‘पेपर लीक’ होने की जानकारी लीक हो गई इसलिए दूसरी बार भी परीक्षा रद्द करनी पड़ी. यदि जानकारी लीक नहीं हुई होती तो निश्चय ही परीक्षा हो जाती. होती भी है. देश के कई हिस्सों में प्रश्नपत्र लीक होने और परीक्षा में चोरी किए जाने की घटनाओं के बावजूद परीक्षा पूरी होती है. न केवल शैक्षणिक परीक्षाएं बल्कि नौकरी मिलने वाली परीक्षा में भी चोरी और बेईमानी की घटनाएं हमें हमेशा ही चिंतित करती रहती हैं. बिहार और उत्तरप्रदेश तो इस मामले में शुरु से ही कुख्यात रहा है लेकिन मध्यप्रदेश में व्यापम घोटाले के रूप में हम सब इसका विभत्स चेहरा देख ही रहे हैं.  न जाने कितने लोग फर्जी तरीके से मेडिकल की पढ़ाई करने लगे और न जाने कितने लोग सरकारी नौकरियों में पहुंच गए. हां, कुछ लोग इस समय घोटाले को लेकर जेल में हैं. शायद कुछ और दिन जेल में ही रहें. हो सकता है कि कुछ लोगों को सजा हो भी जाए लेकिन जरा कल्पना कीजिए कि जो लेग इस तरह से परीक्षा पास करते हैं वे अपनी जिंदगी में क्या करेंगे? उनकी तो बुनियाद में ही चोरी और बेईमानी है तो भविष्य में भी वही करेंगे! वे इंजीनियर बनें या ठेकेदार, वो तो ज्यादा से ज्यादा पैसे ही बचाना चाहेंगे. ऐसे में पुल गिरेगा नहीं तो क्या होगा?
मुङो तो उन मां-बाप पर तरस आता है जो अपने बच्चों को चोरी से परीक्षा पास कराते हैं, गलत तरीके से व्यावसायिक शिक्षा का कोर्स कराते हैं. एक बार भी यह नहीं सोचते कि जो बेईमानी उसे सिखा रहे हैं, वह उसकी जिंदगी को नरक भी बना सकता है. मध्यप्रदेश के अरविंद जोशी और उत्तरप्रदेश के यादव सिंह का उदाहरण हमारे सामने है जिनके यहां इतना नोट मिला कि नोट गिनने की मशीन लगानी पड़ी. ..लेकिन वो आज कहां हैं? जेल में हैं! उम्मीद करें कि कानून उन्हें बख्शेगा नहीं.
इस बात पर थोड़ा बहुत संतोष किया जा सकता है कि बेईमानों को सजा मिलने की घटनाओं में थोड़ी वृद्धि हुई है लेकिन अभी भी वक्त इतना लग रहा है कि बेईमाकों के भीतर कोई खौफ नहीं बैठा है.
 मन में यह सवाल पैदा होता है कि परीक्षा के लिए प्रश्नपत्र सेट किए जाएं और जिन पर इसे गोपनीय रखने की जिम्मेदारी हो, वही इसे लीक कर दें? एक बार नहीं, दो-दो बार! ऐसा कोई कैसे कर सकता है? मन में सवाल यह भी पैदा होता है कि यह सब कितने पैसे के लिए किया गया होगा? पेपर लीक में शामिल लोगों को कुछ हजार या कुछ लाख मिल गए होंगे. इससे ज्यादा तो नहीं ही मिले होंगे! क्या इन थोड़े से पैसों के लिए हजारों हजार बच्चों को भी बेईमान बना देना छोटा-बोटा अपराध है? यह तो सीधे-सीधे राष्ट्रहित के साथ खिलवाड़ माना जाना चाहिए. एक तरफ हम मेक इन इंडिया की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ बच्चों को बेईमानी सिखा रहे हैं?
हमें इस बात पर गंभीरता से  िवचार करना होगा कि देश के लिए हम कैसी संतान तैयार कर रहे हैं. यह सोचना इसलिए जरूरी है क्योंकि जिन्होंने बेईमानी सीख ली है, वे तो इसे छोड़ने से रहे, भले ही जेल चले जाएं! वैसे लोगों की संख्या कम है और ज्यादातर अच्छे लोग हैं लेकिन बेईमानें की उपरी कमाई अच्छे लोगों को भी आकर्षित करने लगती है. ऐसे लोगों पर ज्यादा जिम्मेदारी है कि वे बेईमानों के प्रति आकर्षित न हों और बच्चों को सही राह दिखाएं. वास्तव में हमें उम्मीदें अगली पीढ़ी से ही लगानी चाहिए. बेईमानी के खिलाफ अगली पीढ़ी ही परचम लहरा सकती है. बेईमानी पूरी तरह समाप्त हो जाए, यह उम्मीद तो नहीं कर सकते लेकिन बेईमानी की कोई सीमा तो हो! 

No comments:

Post a Comment