Monday, June 20, 2016

खतरा डिजीटल डार्क एज का



जरा कल्पना कीजिए कि अगले तीस साल तक अपनी तस्वीरें, अपनी रिपोर्ट्स और दूसरे डाटा कंप्यूटर के हार्डडिस्क पर निरंतर सेव करते जा रहे हैं. इस बीच आप कंप्यूटर भी बदल रहे हैं और नए कंप्यूटर पर या एक्सटर्नल हार्डडिस्क पर सभी डाटा ट्रांस्फर भी कर रहे हैं. तीस साल बाद किसी दिन आपका नया कंप्यूटर अचानक आपका कोई डाटा नहीं खोल पाता है. आप कंप्यूटर इंजीनियर के पास पहुंचते हैं और वह कहता है कि जिस फॉर्मेट में इसे सेव किया गया था, वह अब चलन में नहीं है. इसे कैसे खोले? जाहिर है कि आपके पास पछताने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं होगा. बीस साल पहले जिन लोगों ने फ्लॉपी पर डाटा सेव किया होगा, आज उन्हें फ्लापी डिस्क वाले कंप्यूटर ही नहीं मिलेंगे जिसमें वे फ्लॉपी लगा सकें! इस स्थिति की कल्पना भी सिहरन पैदा करती है. इसी स्थिति को कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने नाम दिया है-डिजीटल डार्क एज!

तो क्या हम डिजीटल डार्क एज की ओर वाकई बढ रहे हैं? कोई और कहता तो शायद हम उसकी बात को हंसी में उडा देते लेकिन यह चेतावनी कंप्यूटर की दुनिया के महारथियों की ओर से आ रही है. गुगल के वाइस प्रेसिडेंट और इंटरनेट के पितामह कहे जाने वाले विंटन ग्रे सर्फ ने फोटोग्राफरों और डाटा स्टोरेज करने वालों को चेतावनी दी कि सबकुछ प्रिंट करके भी रखें अन्यथा किसी दिन डिजीटल डार्क एज के शिकार हो सकते हैं. उनकी यह चेतावनी वाकई बहुत गंभीर है. कंप्यूटर में जो भी डाटा रहता है, उसे देखने, पढने या समझने के लिए कंप्यूटर कई तरह के प्रोग्राम्स और ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग करता है. वक्त के साथ डाटा एक्सेस करने वाले तरीके पुराने पर जाएंगे. उदाहरण के लिए फ्लॉपी डिस्क के डाटा या पुराने वीसीआर टेप को देखना अब सामान्य व्यक्ति के लिए असंभव जैसा हो गया है. यहां तक कि फोटोशॉप के तीन साल पुराने वर्जन को नए आधुनिक कंप्यूटर पर लोड करना अत्यंत कठिन काम है. टेक्नोलॉजी के विकास के साथ इस तरह की समस्याएं भी बढती चली जाएंगी. दुनिया में डिजीटल डाटा बढता ही जा रहा है इसलिए यह जरूरी है कि उसे पढने, देखने और समझने के सॉफ्टवेयर को भी वजूद मे बनाए रखा जाए. जरूरी हो तो उसे नए फॉर्मेट में तब्दील कर लिया जाए.  

स्थिति की गंभीरता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि नासा जैसी संस्था को भी डिजिटल डार्क एज की समस्या से जूझना पड़ा है और एक बार नहीं, कई बार. 1976 के विकिंग मार्स लैंडिंग के मैग्नेटिक टेप करीब दस साल तक अनप्रोसेस्ड रहे. बाद में जब कंप्यूटर पर उनका विश्लेषण करने की कोशिश हुई तो वह पढा नहीं जा सकता था क्योंकि उसका फॉर्मेट अज्ञात था. ओरिजनल फॉर्मेट  या तो समाप्त हो चुका था या नासा ने उसका प्रयोग बंद कर दिया था. बहुत मुश्किल से कुछ तस्वीरें प्राप्त की जा सकीं.

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ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर
से होगी आसानी
एक महत्वपूर्ण खतरा फाइल फॉरमेट को लेकर भी है. कई फॉर्मेट वक्त के साथ पीछे छूटते चले गए . ऐसे सॉफ्टवेयर भी खत्म होते जा रहे हैं जो शुरुआती दौर में फाइलिंग के लिए काम में आते थे. वर्ष 2क्क्7 में माइक्रोसॉफ्ट ने ब्रिटेन के नेशनल आर्काइव के साथ एक संयुक्त कार्यक्रम बनाया ताकि भविष्य में कभी डिजीटल डार्क एज की समस्या पैदा न हो. अभी जो करोडों अनपढी कंप्यूटर फाइलें हैं, उन्हें पढा और देखा जा सके. सबसे बेहतर विकल्प है कि किसी फाइल फॉर्मेट को पढने या उसकी भाषा में लिखने का कोड सार्वजनिक हो. अभी बहुत से कोड सार्वजनिक नहीं रहते हैं. ब्रिटेन के नेशनल आर्काइव ने कहा भी है कि ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर से सबकुछ आसान होगा.

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पितामह का सुझाव
सर्फ कहते हैं कि 21वीं शताब्दी के डाटा को बचाना है तो हमें ऐसा सिस्टम विकसित करना होगा जो हर तरह का डाटा स्टोर करने के साथ ही उस डाटा को एक्सेस करने वाले सभी आवश्यकताओं को भी स्टोर करे. उदाहरण के लिए 32 बिट से 64 बिट आर्किटेक्चर ऑपरेटिंग सिस्टम पर जब मैक ने चेंज किया तो नए सिस्टम को इस तरह तैयार किया गया कि 32 बिट सिस्टम भी उसमें शामिल रहे ताकि पुराने सॉफ्टवेयर भी उपयोगी बने रहें. सर्फ का मानना है कि यदि हम इस तरह का सिस्टम विकसित नहीं कर पाए तो 21वीं शताब्दी ‘सूचनाओं का ब्लैक होल’ बन जाएगी.

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इल्फा की बैठक में
पहली बार हुई चर्चा
‘डिजिटल डार्क एज’ के बारे में सबसे पहली बार 1997 में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ लाइब्रेरी ऐसोशिएशन्स एंड इंस्टीट्यूशन्स  (इल्फा) की बैठक में सुना गया. 1998 में डिजिटल टेक्नॉलॉजी के भविष्य को लेकर हुई ‘टाइम एंड बिट्स’ कांन्फ्रेस में भी इस शब्द को लेकर काफी चर्चा हुई. सवाल केवल लिखित दस्तावेजों को लेकर नहीं है. डिजीटल डार्क एज का खतरा फोटो, वीडियो, ऑडियो और सभी तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को लेकर है. 

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