Monday, June 20, 2016

बड़ा राक्षस है आईएस, उसे जड़ से उखाड़ना होगा




जनाब अब्दुल बासित पहले ऐसे पाकिस्तानी उच्चयुक्त हैं जिन्होंने नागपुर की यात्र की है. वे यहां लोकमत समूह द्वारा भारत-पाकिस्तान संबंध पर आयोजित चर्चा सत्र में भाग लेने आए थे. इस यात्र के दौरान अब्दुल बासित ने खास साक्षात्कार में देश और दुनिया को लेकर बड़ी बेबाकी से अपनी राय व्यक्त की. उन्होंने कहा कि दुनिया के समक्ष इस समय सबसे बड़ा राक्षस इस्लामिक इस्टेट (आईएस) है.  प्रस्तुत है अब्दुल बासित से बातचीत का ब्यौरा..!

दुनिया के कई देशों में इस समय गदर मची हुई है. गृह युद्ध जैसे हालात हैं. इस्लामिक इस्टेट जैसे आतंकी संगठन इस्लाम के नाम पर कत्लेआम मचा रहे हैं जबकि इस्लाम बेगुनाहों के कत्ल की इजाजत नहीं देता! कहां जाकर रुकेगा यह सब?

गदर तो है! कहां जाकर रुकेगा, इसकी भविष्यवाणी करना तो बहुत कठिन है लेकिन जो मेजर पावर्स हैं, अमेरिका, चीन, रूस और क्षेत्रीय ताकतों को यह सोचना चाहिए कि कत्लो गारद से समस्या का हल नहीं हो सकता. हजारों की तादाद में रिफ्यूजी योरप जा रहे हैं. इराक 2003 के बाद कहां रह गया. सीरिया, लीबिया को देख लीजिए, जो कुछ भी हो रहा है. हमारे लिए कुछ अच्छी बात नहीं है. खास तौर पर जिन मुल्कों में यह हो रहा है, वे मुस्लिम मुल्क हैं, इसलिए हमें ज्यादा तकलीफ होती है.
इस्लामिक इस्टेट एक ऐसा राक्षस है जिसका हम सबको मिलकर सामना करना है. इस्लाम में तो इस तरह के इस्टेट की कोई गुंजाइश ही नहीं है. तमाम मुसलमान मुल्क इस बात पर एकमत हैं कि इस राक्षस को खत्म करना है. उसे खत्म हाना चाहिए. हमें यह भी देखना है कि खुदा न खास्ते यह हमारे इलाके में भी आ जाए तो वह बहुत बड़ा खतरा होगा. वो कहते हैं ना ‘निप इन द बड’ जड़ से उखाड़ देना चाहिए. मुङो उम्मीद है कि यदि हम सब मिलकर इस बात पर विचार करें,सोचें तो खतरा आगे नहीं बढ़ेगा. लेकिन दुनिया इस वक्त एक मुश्किल सिच्यूशन में है. देखिए न, कोल्ड वार खत्म हो गया. बायपोलर से हमने सोचा कि यूनिपोलर स्थिति बन रही है. कुछ अर्से बाद हमने देखा कि यूनिपोलर वर्ल्ड, तमाम मसायलों को हल नहीं कर सकता. वह कितना भी पावरफुल क्यों न  हो! फिर हमने चाइना का राइज देखा, आज मल्टी पोलर वर्ल्ड है लेकिन अमेरिका आज भी सुपर पावर के तौर पर है. और भी एक्टर हैं जो अपना किरदार निभा रहे हैं. तो इस वक्त ये जो दुनिया है, वह अपना शेप ले रही है. हमें नहीं मालूम कि किस तरफ जाएगी. लेकिन इकॉनॉमिक कोऑपरेशन सेंट्रल थीम है ग्लोबलाइजेशन की. मैं समझता हूं कि देशों के बीच जो संबंध को इकॉनॉमिक इंटरेस्ट डॉमिनेट करेंगे आने वाले दिनों में. इसके अलावा जो चैलेंजेज हैं, साइबर क्राइम, दहशतर्गी, पर्यावरण के इश्यू हमें साथ लेकर आएंगे क्योंकि हमारा इंटरेस्ट इसी में है.

तालीबान के एक टुकड़े से पाकिस्तान भी तो परेशान है. जिसे हम पाकिस्तानी तालीबान कहते हैं, अफगानिस्तानी तालीबान अलग है. पाकिस्तान का नजरिया क्या है?
पाकिस्तानी तालीबान हमारा मसला है और हम उससे निपट रहे हैं. ये जरूर है कि पाकिस्तानी तालीबान के कुछ लीडर इस वक्त अफगानिस्तान में मौजूद हैं. इसमें अब्दुल्ला फजुल्लाह है. उससे हमें परेशानी होती है. लेकिन तहरीके तालीबान को हम खत्म करके रहेंगे. पिछले दो साल से हमने काफी कामयाबी हासिल की है. यदि आप देखिए तो पहले जो सुसाइड बॉंबिंग होती थी, या जो हिंसा होती थी. वह काफी कम हो गया है. कराची में रौशनी वापस आ रही हैं. दहशत को हम इंशाअलल्ला खत्म करके ही रहेंगे.

लेकिन पाकिस्तान क्यों चाहता है कि अफगानिस्तान में तालीबान से बातचीत हो. आखिर उसी तालीबान ने तो अफगानिस्तान का यह बुरा हाल किया है! उससे बातचीत क्यों होनी चाहिए?
देखिए,दुनिया ये मानती है, अमरीका मानता है, चीन मानता है, रूस मानता है और अफगानिस्तान की हुकूमत मानती है कि तालीबान के साथ बातचीत होनी चाहिए. सबका यह खयाल है कि बातचीत जरूरी हैयदि अफगानिस्तान में अमन लाना है. बातचीत की जरूरत से कोई भी इनकार नहीं कर रहा है. देखना यह है कि तालीबान को किस तरह बातचीत की मेज पर लाएं. किस तरह बात आगे बढ़े.

चलिए भारत-पाकिस्तान के रिश्ते की बात करते हैं. बातचीत में गर्मजोशी क्यों नहीं है?

देखिए किसी एक किसी मुल्क को कहें कि वहां से गर्मजोशी नहीं है या मैं यह कहूं कि हमारे यहां से गर्मजोशी है. किसी एक खास सेगमेंट को लेकर कहना ठीक नहीं है. हमारे यहां दिक्कत यह है कि हमने मसायलों को ठीक तरह से हल करने की कोशिश नहीं की है. अब यह है कि हमें विन सिच्यूशन की कोशिश करना चाहिए. हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि एक दूसरे की बात को समङों और आगे बढ़ने की कोशिश करें. खुद ब खुद गर्मजोशी पैदा हो जाएगी. लोगों में तो गर्मजोशी है. एक दूसरे से मिलना चाहते हैं. पाकिस्तान जाना चाहते हैं, पाकिस्तान के लोग भारत आना चाहते हैं. ऐसा नहीं है कि गर्मजोशी नहीं है. मुद्दा यह है कि गर्मजोशी को कैसे हम एक ताल्लुक में बदल सकते हैं. यह एक बड़ा चैलेंज है. मैं समझता हूं कि बातचीत आगे बढ़े और आहिस्से-आहिस्ते अपने मसायलों को हल करना शुरु कर दें तो हम आगे बढ़ जाएंगे. जो भी हमारे मसायल हैंै, विवाद हैं उनको दूर करें. दुनिया बदल रही है. हमें भी बदल जाना चाहिए.

दोनों देशों के बीच ये अविश्वास का वातावरण क्यों है?
मैं यह नही कहूंगा कि अविश्वास का वातावरण नहीं है. पाकिस्तान में भी लोग इस तरह सोचते हैं, समझते हैं. आपके यहां भी हैं लेकिन यह तभी दूर होगा जब हम एक दूसरे से मिलेंगे, बातचीत करेंगे. संबंध बढ़ेंगे, एक दूसरे के यहां आना जाना बढ़ेगा. अब देखिए एक जिंदगी चैनल है जिस पर लोग पाकिस्तानी ड्रामें देखते हैं. पहले शायद पाकिस्तान को एक मुख्तलिफ अंदाज से देखते थे लेकिन उन ड्रामों को देखने के बाद लोगों को एहसास हो रहा है कि पाकिस्तान तो हमारे जैसा ही है. यहां पर मैने कुछ ड्रामें देखे हैं. वो जो खातून होती है वो जेवर पहनकर ही जगती है और जेवर पहन कर ही सो जाती है. हमें यह बात  समझ में नहीं आती है. हमारे ड्रामें थीम बेस्ड हैं. मुङो अच्छा लगता है कि यहां पर हमारे ड्रामों को देखा जाता है. हम चाहेंगे कि यह सिलसिला आगे बढ़े.

गवादर, छबहार को लेकर बहुत चर्चाएं हो रही हैं. आपका नजरिया अलग है, हमारा नजरिया अलग है. ये नजरिया अलग क्यों?
गवादर का जहां तक ताल्लुक है तो यह चाइना-पाकिस्तान कॉरिडोर का हिस्सा है. हम समझते हैं कि पाकिस्तान की जो ग्राफिकल लोकेशन है, वह हमें नेचुरल इकॉनामिक बनाती है. लैंड लॉक्ड सेंट्रल एशिया है, अफगानिस्तान भी है. इन दोनों के बीच हम ही आते हैं. हमें कोई शक नहीं है कि पांच साल बाद, दस साल बाद, पंद्रह साल बाद पाकिस्तान इस क्षेत्र का इकॉनॉमिक हब बन जाएगा. इसीलिए हमारे प्रधानमंत्री की जो पॉलिसी है डेवलपमेंट फॉर पीस एंड पीस फॉर डेवलपमेंट, ये उसी का एक हिस्सा है. हम देख रहे हैं कि पाकिस्तान एक इकॉनॉमिक पावर की तरफ बढ़ रहा है और इन दोनों रीजन को मिलाएगा. जब तक इंटीग्रेशन और कनेक्टिवीटी नहीं होगी तब तक हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे. इसलिए जरूरी है कि जितने प्रोजेक्ट हैं, उन्हें हम पॉजिटिवली देंखें. कोई कंपीटिशन नहीं है. इकॉनॉमिक कंपीटिशन है, हेल्दी कंपीटिशन होना चाहिए.
और छबहार पर आपकी क्या राय है?
बहुत से लोग छबहार को लेकर प्रायवेटली बहुत कुछ कहते हैं लेकिन हमें नहीं लगता कि हमारा कोई राइवल है. इरान के साथ हमारे अच्छे ताल्लुकात हैं और बहुत गर्मजोशी है. कोई वजह नहीं है कि किसी चीज से यदि इरान को फायदा हो रहा है तो पाकिस्तान को उससे कोई आपत्ति हो. गवादर और छबहार एक दूसरे से समन्वय के सूत्र हो सकते हैं, राइवल नहीं होना चाहिए. गवादर की खूबी यह है कि यह दुनिया का सबसे गहरा पोर्ट है. इसमें चीन की जो दूरी है, उसमें हजारों किलो मीटर का फर्क पड़ जाएगा. हमारे हिसाब से भी, पाकिस्तान इस समय इनर्जी डिफिसिएंट यानि उर्जा संकट की कमी का सामना करने वाला देश है, उसे बहुत फर्क पड़ जाएगा. अब हमारे प्रोजेक्ट लग रहे हैं. उन्नति हो रही है. मिसाल के तौर पर पाकिस्तान में जो रोड कंडीशन है, इतना शानदार है कि कि और कहीं नजर नहीं आएगा. हमारे मोटर-वे जैसा मैंने अभी तक भारत में नहीं देखा. जो लोग पाकिस्तान जाते हैं, वे हैरान हो जाते हैं कि हम तो वेस्ट में आ गए. इतनी डेवलप्ड मोटर-वे है. हमारे यहां बहुत काम हो रहे हैं. मैं आपको एक और मिसाल देता हूूूं. जो हमारे इंस्टीट्यूशन्स हैं, वे बेमिसाल हैं. आप डिंगी के बारे में जानते होंगे. हमने एक साल के अंदर डिंगी पर काबू पाया. 2011 में बहुत से लोग डिंगी से मरे थे लेकिन अब हमने उस पर काबू पा लिया. हमारा तो तजुर्बा है. हमने ये श्रीलंका से सीखा था.

लेकिन पोलियो को लेकर ऐसी स्थिति क्यों नहीं है. पाकिस्तान में अब भी पोलियो की दवा पिलाने वालों को सुरक्षा की जरूरत पड़ती है. वहां कहते हैं कि इस्लाम पोलियो की दवा पिलाने की इजाजत नहीं देता!

देखिए ट्रायबल पॉकेट्स में इस तरह की बात कुछ लोग सोचते हैं. पुराने खयालात के लोग हैं, उनके जेहन में एक बात बस गई है. साल के अंत तक 20-30 केसेज थे लेकिन अब पाकिस्तान पोलियो मुक्त हो जाएगा. चूंकि हमारा अफगानिस्तान के साथ बोर्डर है, अफगानिस्तान में भी पोलियो है. उस बोर्डर से हर रोज पचास से साठ हजार लोग क्रास होते हैं. इस वजह से हमारे लिए उसे संभालना मुश्किल हो जाता है लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान-अफगानिस्तान पोलियो फ्री हो जाएंगे.

आपने अभी ट्राइबल पॉकेट्स की बात की है. क्या वो वही लोग हैं जो ‘पत्नी की हल्की पिटाई’ के मसले में शामिल हैं. अभी यह मुद्दा इंटरनेट पर खूब चल रहा है.
नहीं-नहीं, वो तो हमारी इस्लामिक आइडियोलोजी की एक संस्था है उसने एक रिकोमेंडेशन दी है. उस पर बहस हो रही है. जरूरी नहीं कि जो रिकोमेंडेशन दी है, उसे पार्लियामेंट में एक्सेप्ट ही कर लिया जाए. एक बहस है जो हो रही है. क्या फाइनल शेप लेता है. वाकई एक कानून बनता है तो हम देखेंगे कि क्या होता है. मैं समझता हूं कि अच्छी डिबेट है मुल्क के लिए. इससे लोगों के जेहन भी खुलते हैं. नई राहें भी निकलती हैं. डिस्कशन होने में कोई बुराई नहीं है.



भारतीय खाने में मिर्ची
बहुत पर रहा नहीं जाता
बातचीत के दौरान अब्दुल बासित ने कहा- भारतीय खानपान मुङो बहुत पसंद है. आप जहां भी जाते हैं, नई चीज खाने को मिल जाती है. नया टेस्ट मिलता है. मिसाल के तौर पर दाक्षिण भारत के खाने की लज्जत लाजवाब है. लखनऊ, हैदराबाद के खाने की बात ही कुछ और है. मेरे खयाल में भारत कल्चरली बहुत रिच मुल्क है. यहां पर उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक तरह-तरह की चीजें खाने को मिलती हैं. मैं तो बहुत शौक से खाता हूं. थोड़ी मिर्ची ज्यादा होती है लेकिन जायका इतना अच्छा होता है कि रहा नहीं जाता. 

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