Monday, June 20, 2016

लक्ष्मी घर क्यों नहीं आई?


जब से होश संभाला है तब से लक्ष्मी को मैं दो रूपों में जानता रहा हूं. जब भी किसी के घर में बिटिया का जन्म होता है या बहु आती है तो कहा जाता है-‘लक्ष्मी घर आई है!’ दूसरी उस लक्ष्मी को जानता हूं जिसे हम सभी धन कहते हैं और निश्चित रूप से जो जीवन का आधार भी है. दिवाली के दिन इसी लक्ष्मी की पूजा खास तौर पर की जाती है ताकि हमें कभी धन की कमी का समाना न करना पड़े. इस लक्ष्मी को यूं तो हम हर दिन और हर वक्त मन ही मन पूजते ही रहते हैं लेकिन दिवाली खास मौका होता है. यह एक उम्मीद की पूजा भी है कि हमारे जीवन में सदा उजियारा रहे. जीवन जश्न से भरपूर हो.

फिलहाल हम दिवाली की पौराणिक कथाओं से हट कर जरा ये सोचें कि हमारी संस्कृति उन दोनों लक्ष्मियों के बारे में क्या सोच रखती है और क्या हम अपनी सांस्कृतिक विचारधारा के अनुरूप लक्ष्मी के दोनों स्वरूपों को पूज रहे हैं? यह एक गंभीर सवाल है और सच मानिए कि जिस दिन हमने और हमारे समाज ने इस सवाल को सुलझा लिया, उस दिन जीवन में वाकई उजियारा आ जाएगा! बहरहाल मौजूदा वक्त का सच यही है कि हम दूसरी लक्ष्मी के लिए इतना अधीर हुए जा रहे हैं, इतने बेसब्र हैं कि यह सोचते तक नहीं कि ये दूसरी लक्ष्मी आ किस रास्ते से रही है? बस लक्ष्मी चाहिए, किसी भी तरह चाहिए!

..और पहली लक्ष्मी? कुछ आंकड़े आपको भयभीत कर सकते हैं. हरियाणा के सत्तर गांवों में पिछले कई सालों से किसी लड़की का जन्म ही नहीं हुआ है. हरियाणा में लक्ष्मी के साथ क्रूरता की खबरें आती रही हैं लेकिन इसी साल मेनका गांधी ने जब पानीपत में यह खुलासा किया तो रोंगटे खड़े हो गए. इतने सारे गांवों में लड़कियों का जन्म नहीं ले पाने का कारण क्या हो सकता है? दरअसल मेनका गांधी ने ही एक दूसरे आंकड़े से यह बता दिया कि ऐसा क्यों हो रहा है. और यह आंकड़ा है कि इस देश में हर दिन करीब 2000 लड़कियों को गर्भ में ही खत्म कर दिया जाता है. साल के 365 दिनों से इसे गुना कर दें तो यह आंकड़ा सालाना 7 लाख 30 हजार के आसपास पहुंच जाता है. जो देश इतनी सारी बच्चियों को जन्म ही न लेने दे, वहां लक्ष्मी के घर आने की कल्पना भी कैसे की जा सकती है. हरियाणा में स्थिति थोड़ा ज्यादा विकट है लेकिन देश के दूसरे राज्यों में अच्छी स्थिति कहां है? सरकार ने लिंग परीक्षण और कन्या भ्रुण हत्या को दंडणीय अपराध घोषित कर रखा है. प्रचार माध्मों पर इसका खुलासा होता रहता है फिर भी इस देश में हजारों, लाखों ऐसे परिवार हैं जो बेटियों को जन्म ही नहीं लेने दे रहे हैं. सवाल पूछना लाजिमी है कि इन घरों में लक्ष्मी क्यों नहीं आ रही है?

लक्ष्मी यदि घर आ भी जाती है तो उसके साथ हम कैसा सलूक करते हैं. लड़कों और लड़कियों में भेदभाव क्या इस देश की वास्तविकता नहीं है? ऐसे कम ही घर होंगे जहां लड़कियों को वही लार दुलार और प्यार मिलता होगा जितना लड़कों को मिलता है! इसके कई घृणित कारण हमारे समाज के मानस में जमा हुआ है. इनमें से सबसे बड़ा कारण दहेज है जो देश के ज्यादातर हिस्सों में फैला हुआ है. उत्तर भारत में तो लड़की के जन्म के साथ ही दहेज की तैयारियां भी शुरु हो जाती हैं क्योंकि लड़की शादी यदि किसी कमाऊ लड़के से करनी है तो उसके लिए लाखों लाख रुपए का दहेज चाहिए. यह बात किसी से छुपी नहीं है कि लड़के का बाप पूरा हिसाब किताब लड़की के पिता के सामने रख देता है कि लड़के को पढ़ाने लिखाने में कितना खर्च हुआ है. वह एक बार भी नहीं सोचता कि लड़की को पढ़ाने लिखाने में भी तो खर्च होता है. बहुत से लोग यह भी तर्क देते हैं कि लड़की की शादी में दहेज देते हैं तो लड़के की शादी में दहेज क्यों न लें? यह घृणित मानसिकता है.

दहेज दे वास्तव में हमारे समाज में दानव का रूप ले लिया है. देश में हर डेढ़ घंटे में एक बहु दहेज के लिए जला दी जाती हैं, किसी और तरीके से मार दी जाती हैं. ऐसे में यह सवाल तो पूछा ही जा सकता है कि जिस देश में बहु को लक्ष्मी का स्वरूप माना गया वहां लक्ष्मी के साथ यह र्दुव्‍यवहार क्यों किया जाता है? क्या हम लक्ष्मी के इस स्वरूप का सम्मान नहीं कर सकते? पूजने की बात तो बहुत दूर की है, लक्ष्मी के इस रूप को हमारे समाज का बड़ा हिस्सा धन रूपी लक्ष्मी लाने का माध्यम मान बैठा है. जब इस तरह क पिशाची प्रवृति हावी हो जाए तो लक्ष्मी के घर आने और खुशहाली से वास करने की कल्पना भी कैसे की जा सकती है?

अब जरा दूसरी वाली लक्ष्मी की बात करें. दूसरी यानि धन स्वरूपा लक्ष्मी की. हमारी संस्कृति में धन के साथ एक और शब्द जुड़ा हुआ है. वह संपदा. संपदा का अर्थ केवल भौतिक चीजों से नहीं है बल्कि संपदा तो हम उन चीजों को मानते रहे हैं जो प्रकृति की ओर से धरती को मिली हुई है. यह बताने की जरूरत नहीं है कि हमने संपदा को नष्ट करने की ही ठान ली है. अपने आस पास नजर दौड़ाकर देखिए कि प्रकृति की कितनी संपदा को हम सहेज रहे हैं? हम केवल धन की बात कर रहे हैं. संपदा कहीं पीछे छूट गई है. धन रूपी लक्ष्मी के लिए इतना आदर उमड़ पड़ा है, इतनी चाहत पैदा हो गई है हमारे भीतर कि हम कुछ भी करने को तैयार हैं. लक्ष्मी यदि सामने के रास्ते से न आ रही है तो उसे चोर दरबाजे से ले आओ. हमारी इसी प्रवृति ने भ्रष्टाचार को जन्म दे दिया है. जो जहां बैठा है, लक्ष्मी की लूट में शामिल होने से नहीं कतरा रहा है. एक अधिकारी के घर पर छापा पड़ता है तो दो करोड़ रुपए नगद मिल जाता है.  दूसरी तरफ एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसकी किस्मत में धन वाली लक्ष्मी है ही नहीं!

हमारी भारतीय संस्कृति में एक कहावत बहुत प्रचलित है कि जिस घर में लक्ष्मी का सम्मान होता है वहां बरकत होती है. तरक्की होती है. खुशहाली आती है. अब आप ही सोचिए कि लक्ष्मी के दोनों स्वरूपों की यदि हम पूजा न करें, सम्मान न करें तो क्या वास्तविक लक्ष्मी का वास हमारे घर हो पाएगा? जब घर की बेटी और बहु ही खुशहाल न हो तो घर में खुशहाली कहां से आएगी? दिवाली का उजियारा कैसे आएगा?

बेटी और बहु का सम्मान ही वास्तविक लक्ष्मीपूजन है.

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